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Thursday, February 13, 2014

तारीख के धुँधले पन्नें

तारीख़ के धुँधले पन्नों को जब भी मैं पलटता हूँ
इक तस्वीर उबर के आती है जो तुझसे मिलती-जुलती है

तूँ आज भी मेरा हिस्सा है, मुझमें हँसती है मचलती है
तूँ आज भी मुझमें जिन्दा है, मुझमें साँसें तेरी चलती है

तूँ कौन है जो तूँ सामने है, क्यूँ मेरे अश्क तूँ पीती है ?
तेरी रूह तो मुझमें बसती है, बे-रूह तूँ कैसे जीती है ?

मुझे इश्क कभी कहना न आया, जताने में क़सर न रही
तूँ जान-बूझ अनजान रही, क्यूँ फ़ीकी-फ़ीकी हँसती है?