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Tuesday, October 7, 2014

बरसात के बादल के तो

बरसात के बादल के तो कितने अफसाने हैं
वो कहाँ तन्हाँ है ? इक हम ही बेगाने हैं

शीशमहल से गुजरो? और आइने को ढूंढो?
दो गज के फासले पे, तेरे सारे ठिकाने हैं

मैं इश्क का दरया तेरे हुस्न के नज़राने हैं
हम मिलकर भी नहीं मिलते कितने दिवाने हैं

माहताब है अधूरा तो कभी शब के बहाने हैं
रही आरज़ू अधूरी सारे तारे गिनवाने हैं