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Sunday, November 27, 2016

On the live concert of "Dr. Vivek Ranga" मौसिकी से वो बेहतर

On the live concert of  "Dr. Vivek Ranga"

मौसिकी से वो बेहतर रिश्ता निभा रहा था
जैसे ग़ज़ल का हर लफ़्ज़  सँवार रहा था

कभी बाँध देता था उसके पग में घुँघरू
कभी मुरकियाँ सी कानों में डाल रहा था

शब रुक-सी गई थी  महफिल में आकर
चाँद चौदहवीं का भी बेक़रार जा रहा था

मैंने देखा सरे-आम उस के सुरों का जादू
लफ्ज़-लफ्ज़ को उसका मकाम दिखा रहा था