28.05.1997
09:30 P.M
प्रथम पीड़ा
अब मिटती जा रही है
उस चीख़ की गूँज अब
गूँजती है वादियों में
बदन में झुरझुरी-सी फ़ैल जाती है
वो गूँज कभी सुनायी पड़ती है तो
तुम कब उस चीख़
को भूल पड़ी ?
अब आप ही तुम्हारे चेहरे के
भाव बदल जाते है
तुम्हारे होंठ लरज़ रहे
थे उस दिन
आज प्यासे-से नज़र
आते है
आँखों में तैरते लाल डोरे
बेख़ौफ़ मुझे
बुलाते है
तुम्हारा वजूद हिंडोले लेता है
तृप्ती के सागर में
अंग झूलते हुए आप ही
मुझमें समा जाते है
तुम कितना खुश नज़र आती हो !
09:30 P.M
प्रथम पीड़ा
अब मिटती जा रही है
उस चीख़ की गूँज अब
गूँजती है वादियों में
बदन में झुरझुरी-सी फ़ैल जाती है
वो गूँज कभी सुनायी पड़ती है तो
तुम कब उस चीख़
को भूल पड़ी ?
अब आप ही तुम्हारे चेहरे के
भाव बदल जाते है
तुम्हारे होंठ लरज़ रहे
थे उस दिन
आज प्यासे-से नज़र
आते है
आँखों में तैरते लाल डोरे
बेख़ौफ़ मुझे
बुलाते है
तुम्हारा वजूद हिंडोले लेता है
तृप्ती के सागर में
अंग झूलते हुए आप ही
मुझमें समा जाते है
तुम कितना खुश नज़र आती हो !