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Wednesday, July 3, 2013

फर्क पड़ता है - हाँ

फर्क पड़ता है - हाँ
किसी-किसी को फर्क पड़ता है !
कोई हम संग पल-पल जोड़े बैठा है
कोई समझ रहा है धड़कने दिल की
फ़कत गिले करने के लिये ही तो शब्द नहीं बने है ?
आभार भी प्रकट करता हूँ ज़िंदगी का.......
मजबूरी तो नहीं है सोच से सोच मिलाना
मगर अच्छा तो लगता है कभी खुद को भी भूल जाना
हाँ ! कभी बंधन की भी अभिलाषा है मन को
प्यार हो और मुझे बाँध ले कच्ची डोर से
कभी इस ओर से - कभी उस ओर से
मेरी नादान इच्छाओ ने परेशान रखा है मुझे
वरना कुदरत ने तो बाहें फैला रखी है हरदम
जरूरत है मुझे खुद को ही समझने की बस !!!!!!!!!

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