वो जो दरया था मचलता हुआ बह भी गया
सूखी-सी खल्वतें चुभती है पलकों पे मेरी
कारवाँ यादों का लूट लिया ज़माने ने मगर
कुछ बाकी है बन के दुआ इबादततों में मेरी
मैं ज़िंदा हूँ मर के या मर-मर के जी रहा हूँ
करिश्मा तेरी रूह का रहता है चाहतों में मेरी
वसूले है ज़माने ने कर्ज़ जो उठाए भी नहीं
बनके सकून ज़िंदा है तूँ अब राहतों में मेरी