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Sunday, August 16, 2015

वो जो दरया था मचलता हुआ बह भी गया


वो जो दरया था मचलता हुआ बह भी गया
सूखी-सी खल्वतें चुभती है पलकों पे मेरी

कारवाँ यादों का लूट लिया ज़माने ने मगर
कुछ बाकी है बन के दुआ इबादततों में मेरी


मैं ज़िंदा हूँ मर के या मर-मर के जी रहा हूँ
करिश्मा तेरी रूह का रहता है चाहतों में मेरी

वसूले है ज़माने ने  कर्ज़ जो उठाए भी नहीं
बनके सकून ज़िंदा है तूँ अब राहतों में मेरी

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