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Tuesday, September 1, 2015

मैं पागल आवारा दिवाना हूँ


मैं पागल आवारा दिवाना हूँ
मुझसे दिल न लगाना तुम
मुझे खामोशी से याद करना
अपनी खामोशियों में बुलाना तुम

मैं घुल जाऊँगा खामोशियों में
बनके सकून ज़िंदगी का
बंद करके अपनी आँखें बस
लुत्फ़ उठाना तुम

मैं खुद अहसास हो गया हूँ
प्यार का अहसास करके
आह न भरना कोई मुझे
अहसास में जी जाना तुम

आओ मिलने और बिछड़ने से
अब पार चल पड़ें
न जिस्म ही टटोलें हमारी
रूह ही बन जाना तुम

नमकीन से जज़्बात मुलायम से अल्फाज़ मिले तो ग़ज़ल हो गयी




तेरे बदन की खुश्बू घुली मेरी साँसों में  तो
ग़ज़ल हो गयी

तेरी आँखों की शराब छलकी मेरे दिल से  तो ग़ज़ल हो गयी

टूटी जो तेरी अलसायी सी अंगड़ायी तो
ग़ज़ल हो गयी

तेरी पलके जो झुकी तो शाम यूँ ढली तो ग़ज़ल हो गयी

नमकीन से जज़्बात मुलायम से अल्फाज़ मिले तो ग़ज़ल हो गयी

Sunday, August 16, 2015

वो जो दरया था मचलता हुआ बह भी गया


वो जो दरया था मचलता हुआ बह भी गया
सूखी-सी खल्वतें चुभती है पलकों पे मेरी

कारवाँ यादों का लूट लिया ज़माने ने मगर
कुछ बाकी है बन के दुआ इबादततों में मेरी


मैं ज़िंदा हूँ मर के या मर-मर के जी रहा हूँ
करिश्मा तेरी रूह का रहता है चाहतों में मेरी

वसूले है ज़माने ने  कर्ज़ जो उठाए भी नहीं
बनके सकून ज़िंदा है तूँ अब राहतों में मेरी