गिरह खोल के मोहब्बत की वफ़ा ढूँढता हूँ
दिलकश वादों में आज कई दफ़ा ढूँढता हूँ
मेरी तशनगी का गवाह बना है ज़र्रा-ज़र्रा
कभी समंदर करे क़तरे से ज़फा ढूँढता हूँ
सितारे लिपट के चाँंद से मिलते क्यों नहीं
रहते क्यूँ है?सदा फ़लक से खफ़ा ढूँढता हूँ
देखा था तुझे किस्मत की लकीरों में मैंने
जुदा हो गया हिसाब से वो सफा ढूँढता हूँ
दिलकश वादों में आज कई दफ़ा ढूँढता हूँ
मेरी तशनगी का गवाह बना है ज़र्रा-ज़र्रा
कभी समंदर करे क़तरे से ज़फा ढूँढता हूँ
सितारे लिपट के चाँंद से मिलते क्यों नहीं
रहते क्यूँ है?सदा फ़लक से खफ़ा ढूँढता हूँ
देखा था तुझे किस्मत की लकीरों में मैंने
जुदा हो गया हिसाब से वो सफा ढूँढता हूँ