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Tuesday, December 30, 2014

जो है एतबार तुम पे

जो है ऐतबार तुम पे वो बरकरार रखना
कि है मोहब्बत याद तुम सरकार रखना

खुशनुमा रहे माहौल यही तस्कीन करता हूँ
कभी-कभी मगर हल्की-सी तक़रार रखना

तुनकमिजाजी की भी तुम्हारी मिसाल दूँ मैं
कभी दिल रुबाई का भी हमसे इसरार रखना

चेहरे पे तुम्हारे मेरी मोहब्बत के अक्स हों
सारी दुनिया के ग़मों से तुम  इंकार रखना

मेरी मोहब्बत  के भी कई  रंग  है  जानाँ
बस ग़म  हो खुशी हो तुम  क़रार  रखना 

मुझे उन हवाओं

मुझे उन  हवाओं का तो पता दो
कि जब मुझे तुम याद आओ
तो उन्हें हाल-ए-दिल बयाँ कर दूँ

वो खामोश मोहब्बत
जो सुलग रही है
बरसों से
उसके धूएँ को
नज़र अंदाज़ कर दूँ

सुलगती मोहब्बत से  मैंने
दिल के चराग़ जलाए  हैं
आ फनां होकर भी तेरी
दुनियाँ  रोशन कर दूँ

कर दूँ अपने जज़्बात ओ ख़्याल
तुझ पे कुर्बान
छू कर तेरे साये को मैं
बेकरार कर दूँ

मुझे मालूम है अब
मुझे तड़पने में  क़रार आता है
खुद को बेनक़ाब कर
ये इक़रार कर दूँ  

Tuesday, October 7, 2014

बरसात के बादल के तो

बरसात के बादल के तो कितने अफसाने हैं
वो कहाँ तन्हाँ है ? इक हम ही बेगाने हैं

शीशमहल से गुजरो? और आइने को ढूंढो?
दो गज के फासले पे, तेरे सारे ठिकाने हैं

मैं इश्क का दरया तेरे हुस्न के नज़राने हैं
हम मिलकर भी नहीं मिलते कितने दिवाने हैं

माहताब है अधूरा तो कभी शब के बहाने हैं
रही आरज़ू अधूरी सारे तारे गिनवाने हैं

Monday, September 22, 2014

जादुई स्याही

किसी जादुूई स्याही से लिखी लगती है ज़िंदगी की किताब तेरी..........
कि पढ़े हुए पन्नों को कभी पलट लिया तो इबारतें बदल जाती हैं.. .. .......

Saturday, September 13, 2014

मुकाम मिल गया


मुकाम मिल गया इक्किस बरस इंतज़ार का.......
चाँद सितारों ने दिया पता शब-ए-इकरार का.......


मैं दिवाना था किस क़दर विसाल-ओ-करार का...
खुदाया पिया समंदर शब भर हुस्न-ए-यार का....



फिसले चाँदनी तेरे रंग-ओ-जमाल-ए-रुख़सार से
और मुझे मिल गया खज़ाना तेरे इंतख़ाब का.....

ताब-ए-तबस्सुम वायस-ए-सकून-ए-रूह है ग़र
शोखी-ए-नज़र में इशारा है तेरे एतबार का.....

Thursday, February 13, 2014

तारीख के धुँधले पन्नें

तारीख़ के धुँधले पन्नों को जब भी मैं पलटता हूँ
इक तस्वीर उबर के आती है जो तुझसे मिलती-जुलती है

तूँ आज भी मेरा हिस्सा है, मुझमें हँसती है मचलती है
तूँ आज भी मुझमें जिन्दा है, मुझमें साँसें तेरी चलती है

तूँ कौन है जो तूँ सामने है, क्यूँ मेरे अश्क तूँ पीती है ?
तेरी रूह तो मुझमें बसती है, बे-रूह तूँ कैसे जीती है ?

मुझे इश्क कभी कहना न आया, जताने में क़सर न रही
तूँ जान-बूझ अनजान रही, क्यूँ फ़ीकी-फ़ीकी हँसती है?