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Saturday, May 6, 2017

बचपन में खेलना पतंगों से याद आता है

For Gauri
11:04:2016
10:15 PM

बचपन में खेलना पतंगों से याद आता है
इ-इमली ऊ-उल्लू ऋ-ऋषि याद आता है

कंचों की चरमराहट में खेलना मिट्टी से
वो लंगड़ी टांग वो चोर सिपाही याद आता है

ढ-ढक्कन से ढक जाता था दिमाग सारा
अँ - खाली से सब खाली रह जाना याद आता है

ब-बस तक मैं पहुंच नहीं पाया कभी भी
ओ-ओखली में अपना सर देना याद आता है

Wednesday, May 3, 2017

फुरसत भी हो ...... तनहाई

फुरसत

भी हो ......

तनहाई

भी हो .......

ऐसे में ताजा हवा का झोंका

छू जाए वजूद को
.
.
.
.
.
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दो लफ़्ज़

हो मेरे पास .....

इक तुझ में

खो जाएं कहीं ......

और ढूंढता फिरे

महबूब को......

तू आने की बात करके दिल को यूँ

तू आने की बात करके दिल को
यूँ भरमाया ना कर ....
ये बेसाख्ता उछलता है फिर
तेरे ख्वाब देख कर .....

वो वाकिफ नहीं है मेरे ख्वाबों की शिद्दत से

वो वाकिफ नहीं है मेरे ख्वाबों की शिद्दत से  शायद.....
इक बार ख्वाब में आया तो फिर निकल नहीं पाया......