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Friday, June 26, 2020

ना मैं तेरे होने से हूँ Re,Kafir



In reply to my friend Devender "Kafir"

ना मैं तेरे होने से हूँ 
ना तूँ मेरे होने से है 
मैं भी उसके होने से हूँ 
तू भी जिसके होने से है 

खेती इंसान की ना मेरा कारोबार 
ना तेरा सरोकार 
बीज की फितरत भी फ़क़त 
बस किसी के बोने से हैं 
इल्म बीज को भी कहाँ ?
बना वो किस के कोने से है 

ना तूँ मेरे दर्द में शामिल 
ना मैं तेरे दर्द में शामिल 
कोई फर्क नहीं यहाँ पर 
मतलब चाहे किसी के रोने से है

हाँ यह सच है बिल्कुल सच है 
गुम है हम दोनों 
मगर यह कहना मुश्किल कि 
यह तेरे खोने से या मेरे खोने से है 

अब जान कर भी अंजान मत बन "क़ाफिर" जाने तू भी है सारा खेल 
ना कुछ तेरे होने से है 
ना कुछ मेरे होने से है 


इल्तज़ा है जिंदगी से मेरी Re

इल्तज़ा है जिंदगी से मेरी
किसी रोज़ वो मेरे घर आये

मैं सितारों को भी दावत दे दूं
कह दूं वक़्त से भी ठहर जाये

उनकी आँखों से लिपटी शबनम
काश मेरी पलकों पे कहर ढाए

चांदनी फिसले बदन से तुम्हारे 
रूह में शबनम सी उतर जाए 

इश्क सा महके चाँद की रात 
उस शोख़ से कहना सँवर जाए




जज्बातों का गुलदस्ता

जज्बातों 
का गुलदस्ता
लिए खड़ा हूँ
उस मोड़ पर
सोचता हूँ
तुम्हें पुकार लूँ
या सिर्फ निहार लूँ

कभी सोचता हूँ
तुम खुद बढ़ कर
जीत लोगे मुझे
कभी सोचता हूँ
खुद जाकर तुम
से ही मैं हार लूँ

मायने हार जीत के
उतने भी नहीं है
जितने अरमान
सोचा है तुम पर
यूँ ही वार दूँ

तुम्हारी
नजरों की शरारतें
कचोटती हैं दिल को
किस यत्न से कहो
इन आँखों के पार हूँ

कोई कुछ भी कहे
हमें क्या लेना देना
मगर, दिल तो बहुत है
तुम्हारी जिंदगी सँवार दूँ