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Saturday, November 26, 2011

अक्स जब भी देखा है आईने में हमने

04-12-2008
06:35 P.M

अक्स जब भी देखा है आईने में हमने
नज़र भर तुमको देखा है ऐसे  हमने

ज़माने के चलन से कभी सरोकार न रहा
एतबार मोहब्बत पे रखा है ऐसे हमने

वक़्त ने दी है मोहल्लत कुछ कहने की
जब की हर लफ़्ज़ कह रखा है वैसे हमने

मोहब्बत की तस्वीर को कोई तो रंग दो
हर रंग को तुमसे जोड़ रखा है जैसे हमने

कह दूं या ख़ामोश रहूँ अब बात एक है
मक़ाम मोहब्बत में देख रखा है कैसे हमने

My First ever Poem - Dec. - 1988

This is my first poem ,written in Dec. 1988

हर दिल में इक सपना - सा देखा है
हर नज़र में कोई अपना - सा देखा है

इक मेरी नज़र सुनसान - सी क्यूं है ?
अपनी डगर से अनजान - सी क्यूं है?

मुश्किल नहीं है गर रहे ज़िंदगी की इतनी
फिर मेरी ज़िंदगी परेशान - सी क्यूं है ?

समझ आता है न परेशानी का सबब
न दिल ही को कऱार आता है

सपनो में भी देख लिया रह कर
हर वक़्त तन्हाई का ख्याल आता है

Thursday, November 10, 2011

ढल जाएगा ये हुस्न तो क्या कीजिएगा

23.04.1994
4:00 P.M

ढल जाएगा ये हुस्न तो क्या कीजिएगा
हाँ मेरे शानो पर सर रख दिया कीजिएगा

फीकी जब हो जाएगी इन रुखसारों की लाली
रंग मेरे लहू का कुछ मिला लीजिएगा

ढलक-ढलक जाएगा जब ये आँचल आपका
उभरे मेरे सीने में खुद को छुपा लीजिएगा

आँखों में सरूर न अदाओं में जादू होगा
मेरे अशआरो से शबाब कुछ चुरा लीजिएगा

चाहने वाले दूर हो जायेंगे जब हुस्न के तेरे
जुनूँ मेरे जज़्बातों का फिर आज़मा लीजिएगा


वो आग थी या पानी मैं समझ न पाया

26.03.1994
12:30 A.M

वो आग थी या पानी मैं समझ न पाया
उसने जलाया भी है दिल को बुझाया भी है

उतर कर मेरे दिल में वो मचली थी बहुत
उसने मिटाया भी है मेरे इश्क को बनाया भी है

अटकी थी इक बात जो जुबां पर अज़ल से
उसने बताया भी है दिलबर को सुनाया भी है

कहने को बुरी चीज़ है शराब लेकिन
उसने घटाया भी है जिंदगी को बढ़ाया भी है

Friday, November 4, 2011

इल्तज़ा है जिंदगी से मेरी

26.06.1994
9:45 P.M

इल्तज़ा है जिंदगी से मेरी
किसी रोज़ वो मेरे घर आये

मैं सितारों को भी दावत दे दूं
कह दूं वक़्त से भी ठहर जाये

उनकी आँखों से लिपटी शबनम
काश मेरी पलकों पे ठहर जाए

रात काफी नहीं है इश्क के लिए
उस शोख़ से कहना संवर जाए