This is my first poem ,written in Dec. 1988
हर दिल में इक सपना - सा देखा है
हर नज़र में कोई अपना - सा देखा है
इक मेरी नज़र सुनसान - सी क्यूं है ?
अपनी डगर से अनजान - सी क्यूं है?
मुश्किल नहीं है गर रहे ज़िंदगी की इतनी
फिर मेरी ज़िंदगी परेशान - सी क्यूं है ?
समझ आता है न परेशानी का सबब
न दिल ही को कऱार आता है
सपनो में भी देख लिया रह कर
हर वक़्त तन्हाई का ख्याल आता है
हर दिल में इक सपना - सा देखा है
हर नज़र में कोई अपना - सा देखा है
इक मेरी नज़र सुनसान - सी क्यूं है ?
अपनी डगर से अनजान - सी क्यूं है?
मुश्किल नहीं है गर रहे ज़िंदगी की इतनी
फिर मेरी ज़िंदगी परेशान - सी क्यूं है ?
समझ आता है न परेशानी का सबब
न दिल ही को कऱार आता है
सपनो में भी देख लिया रह कर
हर वक़्त तन्हाई का ख्याल आता है
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