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Saturday, November 26, 2011

My First ever Poem - Dec. - 1988

This is my first poem ,written in Dec. 1988

हर दिल में इक सपना - सा देखा है
हर नज़र में कोई अपना - सा देखा है

इक मेरी नज़र सुनसान - सी क्यूं है ?
अपनी डगर से अनजान - सी क्यूं है?

मुश्किल नहीं है गर रहे ज़िंदगी की इतनी
फिर मेरी ज़िंदगी परेशान - सी क्यूं है ?

समझ आता है न परेशानी का सबब
न दिल ही को कऱार आता है

सपनो में भी देख लिया रह कर
हर वक़्त तन्हाई का ख्याल आता है

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