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Tuesday, June 19, 2012

गुजश्ता मोहब्बत, तमाशबीन ज़माना

09-04-2008
06:30 PM
गुजश्ता मोहब्बत, तमाशबीन ज़माना
बेशक, बा-शक होता है तेरा न आना

सर-ए-राह  ख़ार तिस कारवाँ-ए-ग़ुबार
बेहतर इस से क्या हो, इश्क़ का फ़साना

शाम ढल चुकी सारी शमाँ जल चुकी 
हरफ रख न दे कहीं कोई तेरा बहाना

मेरा हश्र जो हो, चाँद को क्या फ़िकर 
दिल को छू जाता है तेरा नज़रे झुकाना  




मैं नशे में बस बहकता ही रहूँ

22-09-09
11:15 PM
मैं नशे में बस बहकता ही रहूँ
तेरी आँखों से मय मिलती रहे

वो चाँदनी बस मैं पीता ही रहूँ
तेरे जिस्म से जो फिसलती रहे

महकता ही रहूँ खुशबू से मैं
तेरी ज़ुल्फ़ से जो उड़ती रहे

नगमों को मैं सुनता ही रहूँ
तेरी पायल है जो बजती रहे

मोहब्बत को मैं मनाता ही रहूँ
मेरे इश्क़ में जो सजती रहे


Saturday, June 9, 2012

कोई  लाख़ अलग समझे, सब एक  है 

कोई  लाख़ अलग समझे, सब एक  है 
नीयत कोई बुरी  करले रूह पर एक है
कई रंग क़ायनात में, कोई जुदा नहीं
सब रंग मिला दो तो वो भी एक है
कोई किसी भी राह चले तमाम ज़िंदगी
क्या फरक भला जब क़ायनात एक है
कोई दर्द समझ ले इसको या मज़ा 
कैफ़ियत है अलग शै मगर  एक है
कोई फ़कीर कोई वज़ीर ज़िंदगी की बात 
अंज़ाम मौत ही मगर सबका एक है
जिंदगी अलग-अलग बस मौत एक है

Saturday, June 2, 2012

रात के अंधेरो में जिस्म टटोलता है कोई

02-06-2012
04:10 PM
रात के अंधेरो में जिस्म टटोलता है कोई
मेरे ख्वाबों को शिद्दत से तोलता है कोई

मैं आवाज़ दूँ तो मेरी बात नहीं सुनता
ज़ुबां ख़ामोश रख रूह से बोलता है कोई

मैं पूछता हूँ उसको, अपना पता नहीं देता
भर के तस्वीरों में जिंदगी डोलता है कोई

रख के तक़दीर को मेरी इस जमाने से परे
मेरे नसीबों में इक रस-सा  घोलता है कोई