09-04-2008
06:30 PM
गुजश्ता मोहब्बत, तमाशबीन ज़माना
बेशक, बा-शक होता है तेरा न आना
सर-ए-राह ख़ार तिस कारवाँ-ए-ग़ुबार
बेहतर इस से क्या हो, इश्क़ का फ़साना
शाम ढल चुकी सारी शमाँ जल चुकी
हरफ रख न दे कहीं कोई तेरा बहाना
मेरा हश्र जो हो, चाँद को क्या फ़िकर
दिल को छू जाता है तेरा नज़रे झुकाना