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Tuesday, June 19, 2012

गुजश्ता मोहब्बत, तमाशबीन ज़माना

09-04-2008
06:30 PM
गुजश्ता मोहब्बत, तमाशबीन ज़माना
बेशक, बा-शक होता है तेरा न आना

सर-ए-राह  ख़ार तिस कारवाँ-ए-ग़ुबार
बेहतर इस से क्या हो, इश्क़ का फ़साना

शाम ढल चुकी सारी शमाँ जल चुकी 
हरफ रख न दे कहीं कोई तेरा बहाना

मेरा हश्र जो हो, चाँद को क्या फ़िकर 
दिल को छू जाता है तेरा नज़रे झुकाना  




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