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Thursday, February 2, 2017

शब्दों की टोकरी लिए आ जाते हैं लोग

शब्दों
की टोकरी
लिए आ जाते हैं लोग
मेरे दिल के दरवाजे पर
दुकान सजाते हैं लोग

तुम एक
मुस्कुराहट से ही
मेरे दिल में उतर गई
भीतर आने के लिए
बहुत चिल्लाते हैं लोग

सोए हुए अरमान
और खोए से जज्बात
न जाने क्यों इतना
शोर मचाते हैं लोग

लूट लेना मुझे बेशक
बहुत आसान है मगर
लूट लेने के ख्वाब
क्यों सजाते हैं लोग

मुझे परवाह है
हर लम्हा निगाह की तेरी
अपनी नजरों से मेरा
मोल क्यों लगाते हैं लोग

तू खामोश है
एक कदम बढ़ा भी ना सके
मैं इंतजार में खड़ा तेरी
बीच में आ जाते हैं लोग

तू बेवफा समझे मुझे
मौका वफा का दिए बगैर
मैं चुपचाप हूं फिर भी
तेवर दिखाते हैं लोग

तू समझे है मुझे मगर
खुद से अनजान होकर
मैं समझता हूं तुझे
आकर यह बताते हैं लोग

बनके महक
लिपटा हूँ रूह से तेरी
खुशबू बताती है मुझे
तेरे दर से जब आते हैं लोग

तू सामने मेरे
मैं सामने तेरे
हम मिलकर भी ना मिले
बस यही तो चाहते हैं लोग

तू मुझ में है सदा
मैं तुझ में हूं सदा
कभी अपना कभी पराया
तो बन जाते हैं लोग

ना जिस्म है तू
ना निगाह हूं मैं
मगर इक पाक सी मोहब्बत
कहां समझ पाते हैं लोग

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