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Sunday, April 29, 2012

टूट कर बिखरने को भी हौंसला चाहिए इक

‎29-04-2012
12:30 PM

टूट कर बिखरने को भी हौंसला चाहिए इक
वरना सहमे हुए लोग देखे है बहोत

वादा निभाओ तो निभ भी जाता है
और वादा तोड़ने के अंदाज़ देखे है बहोत

लोग मर-मर के जीने को ज़िंदगी कहते है
उनके जीने के इंतज़ाम देखे है बहोत

मौत भी आ जाये तो झूम लूं इक बार
मैंने मरने के ख़्वाब देखे है बहोत

Sunday, April 22, 2012

हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !

21-04-2012
01:30 PM
हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !

ग़म बाँटने का किसी की ग़र है ये सज़ा
तो इस सज़ा का हर बहाना हूँ मैं

हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !

जीता हूँ मैं रोज़, हर शब मरता भी हूँ मैं
गुजश्ता जमाने का इक फ़साना हूँ मैं

हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !

तेरे दिल में भी उतरा तुझे जगाया भी बहुत
तेरे सोये अरमानों का ठिकाना हूँ मैं

हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !

मुझे चाहे कोई क्यूँ, मुझे सराहे कोई क्यूँ
हर तीर चले जिस पर वो निशाना हूँ मैं

हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !


Friday, April 20, 2012

जिंदगी कहती है होकर मेरा इक बार देखो

20-04-2012
12:29 PM
जिंदगी कहती है होकर मेरा इक बार देखो
जिस के ख्वाब है, वो जन्नत बार-बार  देखो

कोशिश क्यूं है मुझसे पार पाने की बता
डूब कर पूरी तरह मुझमे इक बार देखो

मैं तो सदियों से तुम्हारी हूँ तुम्हारी रहूंगी
अपना कर मुझको इक बार देखो

अपना-अपना नज़रिया है सब समझने का
सोच बदल कर मेरे यार इक बार देखो

Thursday, April 19, 2012

जज़्बा हर दिल में इक मोहब्बत का होता है

24-01-1993
10:00 PM
जज़्बा हर दिल में इक मुहब्बत का होता है
हर मुहब्बत को मंजिल मिल जाये ये ज़रूरी तो नहीं

हाँ मुहब्बत है मुझको तुमसे ही "जानम"
एहसास तुम्हे भी इस बात का हो ये ज़रूरी तो नहीं

ग़म हँस कर भी झेलने वाले है इस जमाने में 
अश्क़ ही बहाये तेरी याद में ये ज़रूरी तो नहीं

दिल शाद रह सकता है फ़कत इस जज़्बे से ही
मयकशी से ही दिल बहलाए ये ज़रूरी तो नहीं 

ज़िंदा हूँ तो भी मिसाल क़ायम है मेरी मुहब्बत  की
न पाया तुझे तो फनाँ हो जाये ये ज़रूरी तो नहीं  

Wednesday, April 18, 2012

तेरे महल का कोई दरीचां खुला न था

02-05-1992
09:45 AM

तेरे महल का कोई दरीचां खुला न था
मुफ़लिस तेरा दीदार फिर कैसे करता

तुझसे मिलने का कोई ज़रिया पता न था
दीवाना विसाल-ए-यार फिर कैसे करता

ग़म उठाता रहा ता-उम्र जुदाई में तेरी
अश्क बहाने के सिवा भी वो क्या करता

ख़ुदा तेरी खुदाई से था ताल्लुक इसका
वरना 'नितिन' यहाँ जीकर भी क्या करता 

तंज़ कितने सहे ज़माने में रंज़ोग़म के साथ 
सजदा करता न इश्क में तो क्या करता