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Thursday, December 27, 2012

मंजर ये उनको भी दिखाओ कोई

12-10-1991
07:00 PM
मंजर ये उनको भी दिखाओ कोई
उजड़ा मेरा आशियाँ फिर बसाओ कोई

कहते थे सुर्ख लब है तुम्हारी खातिर
मधुरस फिर से उनका पिलाओ कोई

उजाले होते थे ज़ुल्फ़ सँवारने से उनकी
अँधेरो को अब तो दूर भगाओ कोई

जानते है हर हाल में हूँ खुश मै तो
कुछ तड़प भी मेरी उन तक पहुँचाओ कोई

ज़िंदगी तो बेअसर है अब बिन उनके
मुझको इस ज़िल्लत से बचाओ कोई 

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