मुआफिक नहीं है ये इलाज़ ग़र तेरे मर्ज़ को .....
किसी और नज़रिए से देख ज़िंदगी के कर्ज़ को ....
तमाम चारागर को बख्शी नहीं तौफी़क एक सी ....
इलाही यहां समझे कौन है इबादत के फर्ज़ को ....
मुआफिक नहीं है ये इलाज़ ग़र तेरे मर्ज़ को .....
किसी और नज़रिए से देख ज़िंदगी के कर्ज़ को ....
तमाम चारागर को बख्शी नहीं तौफी़क एक सी ....
इलाही यहां समझे कौन है इबादत के फर्ज़ को ....
वो 'दर्द' सोच भी ले तो हमारी यह हालत होती है .....
सलवटे दिल में पड़़ती है और सांसे गहरी होती हैं.......
अपना वजूद ताउम्र ढूंढता ही रहा 'नितिन' .....
इसी मुगा़लते मैं किसी और की ज़िंदगी जी गया .......
उस के दिल में प्यार था प्यार है मुझे खबर है
क्यों इजहार के वक्त वह अपने लब सी गया
उसके हौसले में कुछ तो कमी छोड़ी थी तूने
खुदाया कमोबेश उसकी सजाये मै जी गया
अब हो कलाम या हो सजदा या फिर दीदार
मगर था जो जहर जुदाई का वो मैं पी गया
क्यों खुद से खफ़ा हो बैठे चंद गुनाह करके ......
वो दरिया दिल तो किसी को कुछ कहता ही नहीं.....
अल्फाज़ तो दीवाने होते है .....
मुंतज़िर हुस्न ओ ज़माल के ....
बहने लगते है पिघल कर ....
जलवाग़री ए हसीँ ख़्याल के .....
Impressed and Inspired by a friend's photo.
वो काई की दीवारों का साथ पाकर भी खुश हो जाती है
फुटपाथ पर खंबे सहारे खड़े होकर भी खुश हो जाती है
उसकी आँखों की चमक का इक अंदाज़ खास है
वो भीतर की रोशनी बिखरा कर भी खुश हो जाती है
उसकी मुस्कान बेशक कत्ल कर दे हजारों लाखों को
वो बन के ज़िंदगी दीवानों की भी खुश हो जाती है
खुशी बनती है भीतर उसके किसी कारखाने की तरह
वो दोस्तों में खुशी लुटा कर भी खुश हो जाती हैं