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Monday, September 26, 2016

मुआफिक नहीं है ये इलाज़

मुआफिक नहीं है ये इलाज़ ग़र तेरे मर्ज़ को .....
किसी और नज़रिए से  देख ज़िंदगी के कर्ज़ को ....

तमाम चारागर को बख्शी नहीं तौफी़क एक सी ....
इलाही यहां समझे कौन है इबादत के फर्ज़ को ....

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