जज्बात और अल्फाज़ का मिलन बना है खास सा तुम कैफियत से जायका लेना हर इक एहसास का
मुआफिक नहीं है ये इलाज़ ग़र तेरे मर्ज़ को ..... किसी और नज़रिए से देख ज़िंदगी के कर्ज़ को ....
तमाम चारागर को बख्शी नहीं तौफी़क एक सी .... इलाही यहां समझे कौन है इबादत के फर्ज़ को ....
No comments:
Post a Comment