Translate

Tuesday, September 27, 2011

उल्हानो का दौर चला तो ज़िंदगी बोली मुझसे,

उल्हानो का दौर चला तो ज़िंदगी बोली मुझसे,
यूं ही घबरा जाता था ? मेरी आग़ोश में आने से !

इक उल्हाना रह गया था तुम्हारा

इक उल्हाना रह गया था तुम्हारा
बाल चेहरे के तुम बढ़ाया न करो

चेहरे के बालों में होती है ख़लिश बहुत
यूं चेहरे से चेहरा टकराया न करो

अपने खुरदरे हाथों से छूते हो बदन मेरा
यूं जिस्म पे खरोंचे बनाया न करो

सुर्ख हो जाते है बेसाख्ता रूख्सार मेरे
यूं ख्वाबों में मेरे चले आया ना  करो

Sunday, September 25, 2011

दो चार बातें इश्क में कही

Ghazal - Old one

 26-06-1994
10:25 A.M


दो चार बातें इश्क में कही
दो एक ग़म दिल ने उठा लिए,

कुछ कसमें खायी कुछ वादे किये
कुछ वफ़ा किये कुछ भुला दिए ,

मेरी ख़ुशी तूं बाँटें तेरा ग़म मैं उठाऊँ
जीने के बस ये बहाने बना लिए ,

तेरे लब जो हिले मेरे अश्क क्यूं बहे?
क्यूं ये पुराने फ़साने सूना दिए  !

Thursday, September 22, 2011

मेरी खामोशियों

एक शे'र -    

07-02-1998
10:15 P.M

मेरी खामोशियों को देख कर ये अंदाज़ लगा लेना
के जज़्बात कोई मेरे दिल में भी मचलता है !

----------------------------------------------------------------

एहसानमंद हूँ तनहाइयों तहे दिल से आपका
के अपने जिस्म से उनकी खुशबू लेता आया हूँ !

Tuesday, September 20, 2011

कागज़ पर उनका नाम कभी लिखते है मिटाते है

  Ghazal - Old one          25-03-1994
                                           7:45 P.M

कागज़ पर उनका नाम कभी लिखते है मिटाते है
बाद उनके जाने के हम ऐसे वक़्त बिताते है

कभी सुबहो ना मिली, कभी शाम ना मिली
किस तरह हुस्न  वाले  इश्क को  सताते  है

साया है उनकी ज़ुल्फ़ का उनके चेहरे का है नूर
जहां वाले जिसे शाम- ओ- सुबहा बताते है

उनको नहीं है इल्म कुछ अपने शबाब का
आईने मुकम्मल उनका हुस्न कहाँ दिखाते है

छाने लगी है मदहोशी सी बाद-ए- सबाँ  में
रखा है शहर में कदम मुहल्ले वाले बताते है

Tuesday, September 6, 2011

कुछ कहना है तुमसे मगर हालात नहीं है,

नज़्म -     एक किस्सा पुराना है....!


कुछ कहना है तुमसे मगर हालात नहीं है,
जज़्बात है दिल में मगर अलफ़ाज़ नहीं है,

काश ! के कुछ ऐसा होता इस जहाँ में की ,
ख़ामोशी बयाँ दिल की हालत करती,

सच जानिए ये भी है दावा मेरा ,
बेतरह से फिर  आप हम पे मरती,

मगर हक़ीक़त-ए-जहाँ में ऐसा रिवाज़ नहीं है,
आगाज़े इश्क तो यहाँ, अंज़ाम नहीं है,

जज़्बात है दिल में मगर अलफ़ाज़ नहीं है,
कुछ कहना है तुमसे मगर हालात नहीं है,

Saturday, September 3, 2011

तन्हां रातों में शबनम के कतरे गिरते है



तन्हां रातों में शबनम के कतरे गिरते है
 आसमाँ  भी  दिन   में  कँहा  रोता   है
शब - ए- ग़म  का  साथी  चाहिए  कोई
सुबहो  तो  सारा  जमाना साथ होता है