इक उल्हाना रह गया था तुम्हारा
बाल चेहरे के तुम बढ़ाया न करो
चेहरे के बालों में होती है ख़लिश बहुत
यूं चेहरे से चेहरा टकराया न करो
अपने खुरदरे हाथों से छूते हो बदन मेरा
यूं जिस्म पे खरोंचे बनाया न करो
सुर्ख हो जाते है बेसाख्ता रूख्सार मेरे
यूं ख्वाबों में मेरे चले आया ना करो
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