16-02-2011
09:20 A.M
09:20 A.M
अल्फाज़ कितने भी पिरो दें मोतियों की तरह
इज़हारे-ए-इश्क वो कर कभी कर नहीं पाते
जज़्बात है जो मोहब्बत के दिल में
ज़ुबां से कभी वो हम कह नहीं पाते
ख्वहिशों का कारवां भी देखा है आते-जाते
ख़्वाबों से आगे कभी कुछ चाह नहीं पाते
अधूरी सी लगती है ज़िंदगी मोहब्बत के बिना
मगर मोहब्बत है जिससे हम कह नहीं पाते
काश ! मेरी नज़रों में पढ़ लें वो सब कुछ
नज़र भर देखे बिना हम तो रह नहीं पाते