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Saturday, January 28, 2012

इज़हारे इश्क न आया मुझको.......

16-02-2011
09:20 A.M

अल्फाज़ कितने भी पिरो दें मोतियों की तरह
इज़हारे-ए-इश्क वो कर कभी कर नहीं पाते

जज़्बात है जो मोहब्बत के दिल में
ज़ुबां से कभी वो हम कह नहीं पाते

ख्वहिशों  का कारवां भी देखा है आते-जाते
ख़्वाबों से आगे कभी कुछ चाह नहीं पाते

अधूरी सी लगती है ज़िंदगी मोहब्बत के बिना
मगर मोहब्बत है जिससे हम कह नहीं पाते

काश ! मेरी नज़रों में पढ़ लें वो सब कुछ
नज़र भर देखे बिना हम तो रह नहीं पाते

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