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Saturday, January 14, 2012

आ जीने का तुझे अंदाज़ सिखा दूँ

10-12-2007
11:50 A.M

आ जीने का तुझे अंदाज़ सिखा दूँ
खोलती नहीं जिंदगी वो राज़ बता दूँ

गुनगुनाती है हवाएँ क्या वादियों में
बजता है कौन सा वो साज़ बता दूँ

इबारतों में बसते है अलफ़ाज़ फक़त
कौन से छुपे है उनमे जज़्बात बता दूँ

बर्क-ए-मोहब्बत जो छूती है तेरे बदन को
कौन सा मांगती है वो मक़ाम बता दूँ

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