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Friday, July 27, 2012

दिलबर के नक्श-ए -पा से हम रिश्ता बनायेंगे

26-06-1994
12:10 AM
दिलबर के नक्श-ए -पा से हम रिश्ता  बनायेंगे
बंदगी करेंगे उसको हम अपना खुदा बनायेंगे

बिखेरेंगे मोती तेरे तबस्सुम के उसमे
अश्कों से अपने इक दरिया बनायेंगे

चमकेंगे सितारे तेरी यादों के जिसमे
तेरे ख्वाबों के सहारे आसमाँ बनायेंगे

मुरझायेगा फूल इस चमन में जो भी
पिरो के धागे में उसकी माला बनायेंगे

अब से बिछडेगा जो भी महबूब से अपने
शिरकत कर  उसको नया जहाँ बनायेंगे

मैं सब कुछ अपना तुझे सौंप दूँ

20-08-1994
09:15 PM
मैं सब कुछ अपना तुझे सौंप दूँ
पर दिल को अपने समझाऊँ कैसे 

खौफ़ ज़माने का मुझमे कितना भरा है
दूर दिल से अपने भगाऊ कैसे

तेरे इश्क ने भी बेशक बेचैन किया है
बेचैनी दिल की अपनी छुपाऊ कैसे

ज़ख्म दिल में कितने गहरे हुए है
हाय सजना तुम्हे दिखाऊ कैसे

तेरा इश्क ही इसका सवाब  है सजना
अपने ज़ख्मो पे मरहम लगाऊ कैसे 

Saturday, July 14, 2012

छूते है जब नन्हें हाथ मुझे

09-07-2012
12:35 PM
छूते  है जब नन्हें हाथ मुझे
खो जाता हूँ नए सँसार में

खुदा जाने इतनी कशिश क्यूँ  है
छोट्टे-छोट्टे बच्चों के प्यार में

खेल-खिलोने, गुडिया, गाड़ी
सब सजते है इनके दरबार में

इनकी मुस्कराहट सारे ग़म भुलादे
सारी खुदायी है इनके अंदाज़ में

Wednesday, July 4, 2012

लेकर दो चार इश्क की बातें

24-04-1994
07:10 AM
लेकर दो चार इश्क की बातें
खुद को गमज़दा बनाये बैठे हो

अंदाज़-ए-ज़िंदगी  जब यही है
खुद को क्यूँ  सज़ा दिलाये बैठे हो

घर भरा पड़ा है नसीहतों से तुम्हारा
इक नसीहत को क्यूँ  भुलाये बैठे हो

सँवारनी है ज़िंदगी जब खुद ही तुम्हे
इंतज़ार ये  किसकी लगाये बैठे हो

'नितिन' से क्यूँ  नाराज़ होते हो
चोट तुम खुद ही खाए बैठे हो

इक तुमसे दिल लगाने से पहले

23-08-1994
6:00 PM
इक तुमसे दिल लगाने से पहले
मेरे दिल का आलम कुछ और था

न समझ थी ग़म-ए-ज़िंदगी की मुझे
जो समझा था वो कुछ और था

कसमसाता था हर दम ये बदन मेरा
जानम गुज़रा ऐसा भी इक दौर था

परेशाँ रहता था क्यूँ ये दिल मेरा
समझ आया मेरी धडकनों का शोर था

मुफलिस के नसीब से क्या रकम लूटी निकली

21-07-1995
3:00 PM
मुफलिस के नसीब से क्या रकम लूटी निकली
सोने-सी संभाल रखी थी दो रोटी सूखी निकली

तमन्नाकश ही रहा सदा भरपेट खाने के वास्ते
जो आस बंधी कभी वो आस भी झूठी निकली

इक रात बहक गया था जब दावत के ख्वाब में
हफ्ता भर के लिए फिर किस्मत रूठी निकली

भर के लाया था पानी जो बच्चों के वास्ते
घर पहुँचा  तो वो हँडिया भी फूटी निकली


रंग जो तेरी बिंदिया का होता

09-09-1994
10:00 PM
रंग जो तेरी बिंदिया का होता
किस शौक से तुम माथे पे लगाती

लाली जो तेरे होठों की होता
किस कदर मुझसे प्यार जतलाती

स्याह-मुकद्दर जो मेरा कजरा होता
हुस्न-ए-जानाँ तुम आँखों में बसाती

ग़र नसीबों में होता मेरे प्यार तुम्हारा
किसी न किसी बहाने तुम मुझे बुलाती

चाँद पूछेगा तो क्या जवाब दोगे ?

19-05-1997
11:30 AM
चाँद पूछेगा तो क्या जवाब दोगे ?
चुप रहकर लोगों से तो बच जाओगे

हर सितारा टिमटिमा कर सवाल करेगा
इन सितारों से कैसे बच पाओगे ?

दिल धड़केगा तो चेहरा हैरान होगा
इश्क को फ़िर कैसे छुपा पाओगे ?

मुझको ख़ुद में ही जब महसूस करोगे
फिर कैसे जुदा तुम रख पाओगे ?