09-09-1994
10:00 PM
रंग जो तेरी बिंदिया का होता
किस शौक से तुम माथे पे लगाती
लाली जो तेरे होठों की होता
किस कदर मुझसे प्यार जतलाती
स्याह-मुकद्दर जो मेरा कजरा होता
हुस्न-ए-जानाँ तुम आँखों में बसाती
ग़र नसीबों में होता मेरे प्यार तुम्हारा
किसी न किसी बहाने तुम मुझे बुलाती
10:00 PM
रंग जो तेरी बिंदिया का होता
किस शौक से तुम माथे पे लगाती
लाली जो तेरे होठों की होता
किस कदर मुझसे प्यार जतलाती
स्याह-मुकद्दर जो मेरा कजरा होता
हुस्न-ए-जानाँ तुम आँखों में बसाती
ग़र नसीबों में होता मेरे प्यार तुम्हारा
किसी न किसी बहाने तुम मुझे बुलाती
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