24-04-1994
07:10 AM
लेकर दो चार इश्क की बातें
खुद को गमज़दा बनाये बैठे हो
अंदाज़-ए-ज़िंदगी जब यही है
खुद को क्यूँ सज़ा दिलाये बैठे हो
घर भरा पड़ा है नसीहतों से तुम्हारा
इक नसीहत को क्यूँ भुलाये बैठे हो
सँवारनी है ज़िंदगी जब खुद ही तुम्हे
इंतज़ार ये किसकी लगाये बैठे हो
'नितिन' से क्यूँ नाराज़ होते हो
चोट तुम खुद ही खाए बैठे हो
07:10 AM
लेकर दो चार इश्क की बातें
खुद को गमज़दा बनाये बैठे हो
अंदाज़-ए-ज़िंदगी जब यही है
खुद को क्यूँ सज़ा दिलाये बैठे हो
घर भरा पड़ा है नसीहतों से तुम्हारा
इक नसीहत को क्यूँ भुलाये बैठे हो
सँवारनी है ज़िंदगी जब खुद ही तुम्हे
इंतज़ार ये किसकी लगाये बैठे हो
'नितिन' से क्यूँ नाराज़ होते हो
चोट तुम खुद ही खाए बैठे हो
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