Translate

Friday, October 12, 2012

मंज़र जज्बातों के किस तरह बदल रहे है

30-11-2007
12:05 AM

मंज़र जज्बातों के किस तरह बदल रहे है
सुलगती चिताओं पर चूल्हे जल रहे है

जुस्तजू-ए-रूह से बे-राब्ता है आलम
खौफ़ के सायो में जिस्म चल रहे है

किस पर करे ऐतबार किस से ख़फ़ा हों
हर इक आस्तीन में साँप पल रहे है

खुशबू का पता नहीं ताज़गी भी नहीं रही
गुलशन में किस तरह के ग़ुल खिल रहे है 

No comments:

Post a Comment