24-01-1994
तूँ जानती भी है रहती है मेरे ख़्यालों में तूँ
तेरे चाँद से चेहरे को नज़रों में बसा लेता हूँ
तूँ छत पर बैठ कर मेरे बारे में सोचती तो होगी
मैं अपने इश्क़ को कुछ इस तरह से मना लेता हूँ
कभी रफ़्ता-रफ़्ता चलती होगी कभी बे-इख़्तियार भी
वहीं बैठा तेरी धडकनों को सहला लेता हूँ
तूँ देख कर मुझको मुँह फेर ले चाहे
हँस कर फिर मैं अपने अश्कों को छिपा लेता हूँ
मेरी हर साँस है तेरी ही तो दी हुई
ये सोच कर मैं अपनी साँसों को बहला लेता हूँ
तूँ जानती भी है रहती है मेरे ख़्यालों में तूँ
तेरे चाँद से चेहरे को नज़रों में बसा लेता हूँ
तूँ छत पर बैठ कर मेरे बारे में सोचती तो होगी
मैं अपने इश्क़ को कुछ इस तरह से मना लेता हूँ
कभी रफ़्ता-रफ़्ता चलती होगी कभी बे-इख़्तियार भी
वहीं बैठा तेरी धडकनों को सहला लेता हूँ
तूँ देख कर मुझको मुँह फेर ले चाहे
हँस कर फिर मैं अपने अश्कों को छिपा लेता हूँ
मेरी हर साँस है तेरी ही तो दी हुई
ये सोच कर मैं अपनी साँसों को बहला लेता हूँ
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