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Saturday, October 6, 2012

आब-ए-पाक़ भी हूँ पहचान ले मुझे

आब-ए-पाक़ भी हूँ पहचान ले मुझे
गंगा में उतर के पावन बन जाऊँगा 

आब-ए-शर भी हूँ मेरी परवाज देख
ज़हन में उतर मदहोशी बन जाऊँगा

आब-ए-अब्र का अब ज़िक्र क्या करूँ
लबों से लगा तश्नगी मिटा जाऊँगा

आब-ए-हयात भी है इक वजूद मेरा
दिल में उतर मोहब्बत बन जाऊँगा

आब-ए-पाक़ = पवित्र पानी
आब-ए-शर   = शराब ,
आब-ए-अब्र  = बरसात
आब-ए-हयात = अमृत 

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