आब-ए-पाक़ भी हूँ पहचान ले मुझे
गंगा में उतर के पावन बन जाऊँगा
आब-ए-शर भी हूँ मेरी परवाज देख
ज़हन में उतर मदहोशी बन जाऊँगा
आब-ए-अब्र का अब ज़िक्र क्या करूँ
लबों से लगा तश्नगी मिटा जाऊँगा
आब-ए-हयात भी है इक वजूद मेरा
दिल में उतर मोहब्बत बन जाऊँगा
आब-ए-पाक़ = पवित्र पानी
आब-ए-शर = शराब ,
आब-ए-अब्र = बरसात
आब-ए-हयात = अमृत
गंगा में उतर के पावन बन जाऊँगा
आब-ए-शर भी हूँ मेरी परवाज देख
ज़हन में उतर मदहोशी बन जाऊँगा
आब-ए-अब्र का अब ज़िक्र क्या करूँ
लबों से लगा तश्नगी मिटा जाऊँगा
आब-ए-हयात भी है इक वजूद मेरा
दिल में उतर मोहब्बत बन जाऊँगा
आब-ए-पाक़ = पवित्र पानी
आब-ए-शर = शराब ,
आब-ए-अब्र = बरसात
आब-ए-हयात = अमृत
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