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Sunday, December 8, 2013

खर्च ज़हन का बढ़ा लिया है मैने

07:30 AM
08-12-2013

खर्च ज़हन का बढ़ा लिया है मैने
वर्क ज़माने का उतार दिया है मैने

रंग-ओ-नक्श मेरा कुदरत की देन है
नीयत को अपनी निख़ार लिया है मैने

फ़ासले अब कहीं चुभते नहीं मुझको
हर ज़र्रे में तुझको देख लिया है मैने

मुझसे रिश्ता तेरा लिखा है अज़ल से
वक्त के साथ ये जान लिया है मैन

Saturday, December 7, 2013

उसने कर दिया पर मैं नहीं कर पाया

11:15 PM
02/12/2013

उसने कर दिया पर मैं नहीं कर पाया
पत्थर इसलिए हाथ में उठाता हूँ मैं

मुझमें दबे जज़्बात वो जिए जी भर के
बस इसलिए उसे सज़ाए दिलाता हूँ मैं

रूक न जाये कहीं रोशनी का कारवाँ
चराग़ इसलिए अब यहाँ जलाता हूँ मैं

मुझमें जो कसमसाता है जाहिर न हो जाए
बेवजह इसलिए अब मुस्कराता हूँ मैं

जिंदगी है ये मुझे इसकी समझ कुछ नहीं
अलबत्ता जिंदगी सबको समझाता हूँ मै

Tuesday, September 17, 2013

मैनूँ अख दे इशारे नाल बुलाँदा ए ओ

23-03-1993
10:45 A.M

मैनूँ अख दे इशारे नाल बुलाँदा ए ओ
कदी इंज ते कदी  ऊँज मनाँदा ए  ओ

कदी मिलन दियाँ रस्माँ समझादा ए ओ
गीत विछोड़े वाले वी कदी सुनाँदा ए ओ

वेखदा रैंदा ते है ओ चकोरे वँगु मैनूँ
हँस के कदी मेरे अगों निकल जाँदा ए ओ

विखदा नहीं ते कुज हूँदा ए दिल नूँ मेरे
की पता कदी कित्थे लुक जाँदा ए  ओ

हँसदा रवे ता ठण्ड रैंदी आ  कलेजे मेरे
उदास रैके वी कदी मैनूँ रुलाँदा ए  ओ 

Tuesday, August 6, 2013

प्यार तुम्हें भी है - और मुझे भी !

प्यार तुम्हें भी है - और मुझे भी !
इंतज़ार तुम्हें भी है - और मुझे भी !

मेरी आँखें कुछ बोले -
इस से पहले,
तुम आँखों से
सब कुछ कह देना चाहती हो

मेरे होंठों की किसी भी
जुंबिश से पहले,
तुम उँगलियों से
हरकतें कर देना चाहती हो

तुम्हारी ज़ुल्फ़ें बेताब है
बिख़र जाने के लिए,
किसी सैलाब की मानिंद तुम
उफनना चाहती हो

Sunday, July 28, 2013

प्रथम पीड़ा

28.05.1997
09:30 P.M
प्रथम पीड़ा
अब मिटती जा रही है
उस चीख़ की गूँज अब
गूँजती है वादियों में

बदन में झुरझुरी-सी फ़ैल जाती है
वो गूँज कभी सुनायी पड़ती है तो

तुम कब उस चीख़
को भूल पड़ी ?

अब आप ही तुम्हारे चेहरे के
भाव बदल जाते है
तुम्हारे होंठ लरज़ रहे
थे उस दिन
 आज प्यासे-से नज़र
आते है
आँखों में तैरते लाल डोरे
बेख़ौफ़ मुझे
बुलाते है

तुम्हारा वजूद हिंडोले लेता है
तृप्ती के सागर में
अंग झूलते हुए आप ही
मुझमें समा जाते है

तुम कितना खुश नज़र आती हो !

Tuesday, July 16, 2013

तेरी कुर्बत भी कभी परेशाँ कर देती है मुझे

तेरी कुर्बत भी कभी परेशाँ कर देती है मुझे
कभी लूट लेता हूँ मज़ा जी भर के ख्यालों में 

Wednesday, July 3, 2013

फर्क पड़ता है - हाँ

फर्क पड़ता है - हाँ
किसी-किसी को फर्क पड़ता है !
कोई हम संग पल-पल जोड़े बैठा है
कोई समझ रहा है धड़कने दिल की
फ़कत गिले करने के लिये ही तो शब्द नहीं बने है ?
आभार भी प्रकट करता हूँ ज़िंदगी का.......
मजबूरी तो नहीं है सोच से सोच मिलाना
मगर अच्छा तो लगता है कभी खुद को भी भूल जाना
हाँ ! कभी बंधन की भी अभिलाषा है मन को
प्यार हो और मुझे बाँध ले कच्ची डोर से
कभी इस ओर से - कभी उस ओर से
मेरी नादान इच्छाओ ने परेशान रखा है मुझे
वरना कुदरत ने तो बाहें फैला रखी है हरदम
जरूरत है मुझे खुद को ही समझने की बस !!!!!!!!!

Wednesday, May 29, 2013

वो जो बिखरे से जज़्बात उमड़ आते है कभी-कभी

वो जो बिखरे से जज़्बात उमड़ आते है कभी-कभी
आओ दोस्तों उन्हें कभी अलफ़ाज़ का लिबास दे 

Monday, May 27, 2013

बहुत खूबसूरत सी है ज़िंदगी

बहुत खूबसूरत सी है ज़िंदगी
आओ दोस्तों मज़ा करे
 
कुछ सरफिरो के चलते
क्यूँ जिंदगी को कज़ा करे
 
खताए होती भी  रहेंगी आदमीं जो ठहरे
कुछ खताओं के चलते क्यूँ जिंदगी को सजा करे
 
बेशक उम्मीद कायम है संभल जाने की
फिसलने की मगर क्यूं हम रज़ा करे
 
गम-ए-हयात की संजीदगी भी रहे कायम
इस निस्बत से खुशनुमा फिज़ा करे
 
..........
आओ दोस्तों मज़ा करे
 

तूँ ही दे इक मशविरा .......

तूँ ही दे इक मशविरा .......
की लुट के तेरे इश्क में
कोई रुख करे तो,
किधर का .......?
 

Wednesday, May 22, 2013

खुशबू और हवाओं के अक्स की बात करते हो


खुशबू और हवाओं के अक्स की बात करते हो
मेरे ज़ेहन से - बहोत आगे की बात करते हो  

इक कतरा प्यास है मेरी, आरज़ू समंदर की कौन करे ?

इक कतरा प्यास है मेरी, आरज़ू समंदर की कौन करे ?
'उसकी' क़ायनात, उसकी जिंदगी, कोई जुस्तजू कौन करे ?

'वोही' सवाल, वोही जवाब, वोही आफ़ताब, वोही माहताब
'किसको' देखूँ, किसको चाहूँ, तासीर-ए-ख़्वाब कौन करे ?

कौन हूँ मैं ? जो चाहूँ कुछ, कौन है तूँ? जिसे चाहूँ मैं
तूँ और मैं यहाँ है भी के नहीं? इसकी इतला  कौन करे ?

कौन आया? कौन गया? किसने बनाया? किसने मिटाया?
किसने खोया? किसने पाया? इसका फैसला कौन करे?


 

Monday, May 6, 2013

तेरी कुर्बत का जश्न कुछ इस कदर मनाया हमने

26-03-2010
12:10 AM
तेरी कुर्बत का जश्न कुछ इस कदर मनाया हमने
भुला दिया ज़माने को फक़त इश्क को अपनाया हमने

लम्हा-लम्हा गिना करते थे कभी वक़्त ज़िंदगी का
वक़्त गुज़र गया कितना अब ये भी छुपाया हमने

चैन नहीं था इक पल, इक बेकरारी सी थी हरदम
तुम्हें पाया तो जुनूँ इश्क का भी दिखाया हमने

दौलत मिली, शोहरत मिली,ख़ुशी सिमट गई दिल में
किस्मत का ये खेल देखा, तुमको जब पाया हमने

यूँ तो खबर भी थी कि,ज़माना लूट रहा है मुझको
तेरी चाहत थी दिल में तो हर फरेब भी खाया हमने 

Friday, April 26, 2013

चाहत दिल में है और ज़माने से डरते हो ?


17-06-2008
12:29 PM
चाहत दिल में है और ज़माने से डरते हो ?
छुप-छुप के मिलने को तुम मोहब्बत कहते हो ?

इबादत से बढ़कर मक़ाम है मोहब्बत का 
जाने किस बला को तुम खुदा कहते हो ?

सोचो क्या गुनाह है?ज़िंदगी में आना तुम्हारा 
खातिर किसके ज़माने के सितम सहते हो ?

पेचीदगियाँ ज़माने की समझने में ज़िंदगी गुज़र जायेगी 
ज़िंदगी कैसे जियें? तुम्हीं कहो अब क्या कहते हो ?

अज़ी एक बार खुद के हो के तो देखो 
फ़िर कह पाओगे किस से मोहब्बत करते हो ?

आप की नज़रों ने कर दिया है घायल मुझे

आप की नज़रों ने कर दिया है घायल मुझे 
अब तक़दीर की मर्ज़ी है दवा दे या दर्द मुझे 

Thursday, March 14, 2013

देखो मेरे आइने से गवाही लेकर

देखो मेरे आइने से गवाही लेकर
छुप-छुप के देखता है चेहरा आपका 

Wednesday, March 13, 2013

खंजर


तेरे तस्सवुर में दुनिया भुलाये बैठे है
बेख़ौफ़ लबों पे खंजर लगाये बैठे है
तुझे वफ़ा चाहिए या लहू की है तलाश
आ देख सारा सामान सजाये बैठे है

Tuesday, March 5, 2013

देख करार आ भी गया

देख करार आ भी गया,
जिंदगी में प्यार आ भी गया 

दामन में तेरे हर ख़ुशी ,
ख़ुशी का इज़हार आ भी गया 

पहले कँहा थी हसरते लबों पे,
लबों पे इकरार आ भी गया 

चुन लो कलियाँ और सितारे,
पैगाम-ए-खुर्शीद-ओ-माह आ भी गया 

तेरी नज़रों के सवाल या जमाने का मलाल 
हर सवाल का जवाब आ भी गया 

Friday, February 22, 2013

दैर-ओ-हरम में जाकर लाख मन्नतें मनायी

दैर-ओ-हरम में जाकर लाख मन्नतें मनायी
ये हश्र हुआ है मेरा की मयखाने  जा रहा हूँ 

Friday, January 25, 2013

जुम्बिश कोई हो भी नहीं मैं तेरा कहा मान लूँ

13-08-2000
01:25 AM

जुम्बिश कोई  हो भी नहीं मैं तेरा कहा मान लूँ
तूँ कुछ कहे भी नहीं और मैं तेरा कहा जान लूँ

देखता रहूँ चाँद को तेरा चेहरा जान कर
सितारों की चमक को तेरा तबस्सुम मान लूँ

निकलता हुआ आफ़ताब हर सुबह मैं थाम लूँ
रौशनी में आफ़ताब की मैं तेरा प्यार जान लूँ

खुशबू तेरे बदन की हर गाम पर मान लूँ
तूँ न मिले तो मैं तेरे लिबास से काम लूँ 

Sunday, January 6, 2013

अच्छा ! अब तुम हमें यूँ सताओगे ?

अच्छा ! अब तुम हमें  यूँ सताओगे ?

छुप के जमाने की भीड़ में,
 इक आवाज़ भी न लगाओगे  ?

मिलोगे जमाने भर से
हमे नज़र भी न आओगे ?

हाल-ए-दिल तुम्हारा हवाओं से जाने ?
अब नज़रों से अपना हाल न सुनाओगे ?

पायल की बंदिशों को तरस गया है दिल
वो दिलरुबा संगीत कब सुनाओगे ?

सोया नहीं हूँ कब से इंतज़ार में तुम्हारी
इक इशारा भेजो क्या ख्वाबों में आओगे ?

Saturday, January 5, 2013

मेरी आँखों की सच्चाइयाँ जो पढ़ी नहीं जाती

मेरी आँखों की सच्चाइयाँ जो पढ़ी नहीं जाती 
तो ज़माने की रवायतों का चश्मा उतार के देख