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Tuesday, September 15, 2020

अच्छा ! अब तुम हमें यूँ सताओगे ?

अच्छा ! अब तुम हमें  यूँ सताओगे ?

छुप के जमाने की भीड़ में,
 इक आवाज़ भी न लगाओगे  ?

मिलोगे जमाने भर से
हमे नज़र भी न आओगे ?

हाल-ए-दिल तुम्हारा हवाओं से जाने ?
अब नज़रों से अपना हाल न सुनाओगे ?

पायल की बंदिशों को तरस गया है दिल
वो दिलरुबा संगीत कब सुनाओगे ?

सोया नहीं हूँ कब से इंतज़ार में तुम्हारी
इक इशारा भेजो क्या ख्वाबों में आओगे ?

Monday, August 10, 2020

नादानियां और तजुर्बे का बंटवारा

नादानियां और तजुर्बे का बंटवारा हो रहा है 
मेरे चेहरे पर झुर्रियों का इशारा हो रहा है 

पहले मैं खुद को समझता था सब कुछ 
अब सब कुछ खुदा का सहारा हो रहा है

बाज़ी इश्क़ की लगा ली उसके साथ
दुनिया भर से अब नकारा हो रहा है

मोहब्बतों से खूब जी भर गया अब तो 
फकत नफरतों से ही किनारा हो रहा है

खुल गया आसमान जो उसके इशारे पर
दुनिया समझ रही है ये आवारा हो रहा है

Friday, July 31, 2020

जज्बात


अब तो मिलने की ज़िद भी छोड़ दी मैंने अब तो अपनी

अब तो मिलने की ज़िद भी छोड़ दी मैंने
अब तो अपनी आँखों में बसा लो मुझ को 

जन्मों की प्यास सदियों से भरी है दिल में 
मेरे वजूद से ही अब तुम मिला दो मुझ को  

मैं कहूँ या कह भी न सकूँ, समझ जाओ तुम
इतराने की इक तरकीब तो बता दो मुझ को

मिलने की बात पर तुम बेशक मुँह मोड़ लो
मैं सँवर जाऊँ ऐसी शाम तो बता दो मुझ को 






Friday, June 26, 2020

ना मैं तेरे होने से हूँ Re,Kafir



In reply to my friend Devender "Kafir"

ना मैं तेरे होने से हूँ 
ना तूँ मेरे होने से है 
मैं भी उसके होने से हूँ 
तू भी जिसके होने से है 

खेती इंसान की ना मेरा कारोबार 
ना तेरा सरोकार 
बीज की फितरत भी फ़क़त 
बस किसी के बोने से हैं 
इल्म बीज को भी कहाँ ?
बना वो किस के कोने से है 

ना तूँ मेरे दर्द में शामिल 
ना मैं तेरे दर्द में शामिल 
कोई फर्क नहीं यहाँ पर 
मतलब चाहे किसी के रोने से है

हाँ यह सच है बिल्कुल सच है 
गुम है हम दोनों 
मगर यह कहना मुश्किल कि 
यह तेरे खोने से या मेरे खोने से है 

अब जान कर भी अंजान मत बन "क़ाफिर" जाने तू भी है सारा खेल 
ना कुछ तेरे होने से है 
ना कुछ मेरे होने से है 


इल्तज़ा है जिंदगी से मेरी Re

इल्तज़ा है जिंदगी से मेरी
किसी रोज़ वो मेरे घर आये

मैं सितारों को भी दावत दे दूं
कह दूं वक़्त से भी ठहर जाये

उनकी आँखों से लिपटी शबनम
काश मेरी पलकों पे कहर ढाए

चांदनी फिसले बदन से तुम्हारे 
रूह में शबनम सी उतर जाए 

इश्क सा महके चाँद की रात 
उस शोख़ से कहना सँवर जाए




जज्बातों का गुलदस्ता

जज्बातों 
का गुलदस्ता
लिए खड़ा हूँ
उस मोड़ पर
सोचता हूँ
तुम्हें पुकार लूँ
या सिर्फ निहार लूँ

कभी सोचता हूँ
तुम खुद बढ़ कर
जीत लोगे मुझे
कभी सोचता हूँ
खुद जाकर तुम
से ही मैं हार लूँ

मायने हार जीत के
उतने भी नहीं है
जितने अरमान
सोचा है तुम पर
यूँ ही वार दूँ

तुम्हारी
नजरों की शरारतें
कचोटती हैं दिल को
किस यत्न से कहो
इन आँखों के पार हूँ

कोई कुछ भी कहे
हमें क्या लेना देना
मगर, दिल तो बहुत है
तुम्हारी जिंदगी सँवार दूँ





Friday, March 6, 2020

तेरी रूहानी आंखों का वो सूनापन

तेरी रूहानी
आंखों का वो सूनापन
लगता है तेरा ही वजूद
तलाश रहा है तुझको

रास्तों पर बदस्तूर चलते देखा
मगर पहुंचकर
मंजिल पर 
भटकते देखा है तुझको

खुशगवार रास्ते पुकारते हैं
अब भी
के सफर के इम्तिहान
बाकी हैं कुछ तो

तूँ रास्तों पर छोड़
कुछ ऐसे निशां अब के
खुद बढ़कर
मंजिल ही पा ले तुझको

Monday, March 2, 2020

ना समझ हूँ लेकिन बादस्तूर फिर भी
ज़माने को सारे समझाए जा रहा हूँ

अपनी तो मुझ को कोई भी ख़बर नही
परमात्मा से सबको मिलवाए जा रहा हूँ

मैं पंडित,मौलवी, वाईज़ और वजी़र
नाम धर्म पे सबको लड़वाए जा रहा हूँ

दैर-ओ-हरम में जाकर लाख मन्नतें मनायी
ये हश्र हुआ है मेरा मयखाने  जा रहा हूँ