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Wednesday, August 31, 2011

जिंदगी को देखो कभी आईने में तुम

ग़ज़ल
31-08-2011, 01:45 A.M
जिंदगी को देखो कभी आईने में तुम
हर लम्हा तैरता हुआ मिल जाएगा

कौन कहता है वक़्त लौटता नहीं
मैं कहता हूँ वक़्त और कँहा जाएगा

सुर और ताल का संगम है संगीत जैसे
वक़्त और जिंदगी में वही राग़ मिल जाएगा

ना ताल ज्यादा बढ़े ना सुर धीमा लगे
वक़्त में ज़िन्दगी,ज़िन्दगी में वक़्त मिल जाएगा

Palak - A Sweet Daughter born on 29-12-1997 !

27-05-1997
03:00 P.M

This Ghazal was written to welcome my child in this universe & then on 29-12-1997 my sweet daughter 'Palak' born to fragrance the life. She is the sweetest......................


इक पल में ही मेरी धडकनें बढ़ा गया
प्यार जब अपनी सब हदें भुला गया

साहिल की जुस्तज़ू थी इक उम्र से हमें
लो मुहब्बत का कारवां साहिल पे आ गया

जुनूँ असरदार हो रहा है आँखों में मेरी
तेरी पलकों का बोझ मेरी पलकों पे आ गया

ये खूबसूरत सी निशानी मुहब्बत की ही है
मेरा लख्ते-जिगर तेरे जिस्म में आ गया



Tuesday, August 30, 2011

ना जुंबिश है जुबां पे

ग़ज़ल - Latest
29-08-2011, 05:10 P.M.


 ना जुंबिश है जुबां पे,ना ज़हन में कोई ख़्याल आया है
 हर लम्हा हसीँ लगता है, जबसे तेरा चेहरा सामने आया है


 अपनी नज़रों से ना कुरेद मेरे ख्वाबों को
 जो तीर चला, वो सीधा दिल के पार आया है

 बेशक रहने दे राज़ छोट्टी-बड़ी बातों को
  इश्क कँहा ? हुस्न से कभी पार पाया है

 जाने दे दुनिया के सलीके को दस्तूर समझ के
  बस शरीफों पे ही तो यहाँ  हर इल्ज़ाम आया है

Saturday, August 27, 2011

यही है, यही है, यही है ज़िंदगी

यही है, यही है, यही है ज़िंदगी
ए-बशर तू इसमें ढूंढता है क्या?

गुज़र गया जो, नसीब था तेरा
परे नसीब से और बूझता है क्या?

जी ले, आज यही  मौका है मिला
हक़ीकत से   और जूझता है क्या? 

 जिआ नहीं तो, मर ही तो गया
बाद मौत के और सूझता है क्या ?








Friday, August 26, 2011

जुबां ही गर फिसल जाये तो क्या करें

  Ghazal                        24-04-1994
                                       06:40 A.M


जुबां  ही  गर  फिसल  जाये  तो  क्या  करें
कहने को कुछ हो कुछ और कह जाये तो क्या करे,


हालत - - परेशानी में सर - - राह जा रहे हो
जलवा - - हुस्न--जानां मिल जाये तो क्या करें


वो  इन्तखाब  करे  ना   करे  ये बात  और  है
खुशबू - - जिस्म से कोई बहक जाये तो क्या करे


बेशक  तेरी  शोखी   देती  है   जिंदगी   सबको
'नितिन' ग़र मरने को बेताब हो जाये तो क्या करें


अच्छा ! येबताओ मुझेइश्क जतानाआता हैया नहीं,

                  
अच्छा ! ये बताओ मुझे इश्क जताना आता है या नहीं,
समझ जाते हो जज़्बात मेरे मुझे बताना आता है या नहीं !
दिल सुनाता होगा कई फसाने तुम्हे,
मेरी धडकनों का सबब भी सुनाता है या नहीं
इक बात सुनाता हूँ,इक बात रह जाती है
ये बात बताता हूँ ,वो बात रह जाती है
शायद वो बात मेरे चेहरे पे जाती है
मेरे चेहरे को समझाना तुम्हे आता है या नहीं

अच्छा ! ये बताओ मुझे इश्क जताना आता है या नहीं !

मेरी ग़ज़ल में खुद की एक पहचान रखना

मेरी ग़ज़ल में खुद की एक पहचान रखना
फिर मिलेंगे, इक ऐसा भी मक़ाम रखना

रवायतें बेअसर हो जाती है, इकअरसा बाद
इस अरसे का हर दम,  तुम ख़्याल रखना

 मेरी तमन्ना तो अब भी मचल जाती है
 अपनी तमन्ना पे तुम,  हिज़ाब रखना

  ज़माने की गर्दिशों में ग़र्क न हो जांए कंहीं
  मेरे इश्क का ऐ खुदा तुम लिहाज़ रखना

Thursday, August 25, 2011

मेरे इश्क की मज़ार पर आया कीजिएगा

28-03-1994
08:30 A.M

मेरे इश्क की मज़ार पर आया कीजिएगा
हंसाया कीजिएगा, कभी रूलाया कीजिएगा 

खुशबू बिखेरेंगे फूल तेरे हुस्न के,
चराग़ दिल के भी कभी जलाया कीजिएगा 

जश्न मनायेंगे मिल कर बर्बादी का मेरी,
सरूर आँखों में भर के आया कीजिएगा 

उदास रह के ना मेरी रूह को परेशाँ करना,
चहक बुलबुल वाली भी सुनाया कीजिएगा

गुस्ताख़ी कहीं मुझसे हो ना गयी हो


  
गुस्ताख़ी कहीं मुझसे हो ना गयी हो

Thursday, August 25, 2011
12:46 AM

गुस्ताख़ी कहीं मुझसे हो ना गयी हो
नज़रें तुम में कहीं खो ना गयी हो 

मै चुराता रहा नज़रें तुम्हें देख कर
चोरी नज़रों से कहीं हो ना गयी हो  

चाहता कहाँ थामै शायर बनना
शायरी तुम पे कहीं हो ना गयी हो  

रिश्ता तो कुछ भी नहीं हमारा तुमसे
आशनाई तुमसे कहीं हो ना गयी हो