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Friday, February 3, 2012

ज़माना हंस रहा है मै रो भी नहीं सकती

03-02-2012
12:45 PM

(मीना जी आपके शे"र  को ग़ज़ल में कहने की कोशिश , गुस्ताखी हो तो माफ़ कर देना )

ज़माना हंस रहा है मै रो भी नहीं सकती
हालात-ए-मजबूरिया सह भी नहीं सकती

गुजश्ता मोहब्बत आज भी ढूँढता है दिल
बात दिल की किसी से कह भी नहीं सकती

बेशक नफ़रत की आग भी नहीं है दिल में
क्यूं समंदर-ए-इश्क में बह भी  नहीं सकती

ये दर्द-ए-ज़िंदगानी का वो फ़साना है दोस्तों
इस दर्द के बिना अब रह भी नहीं सकती




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