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Thursday, December 22, 2016

गिरह खोल के मोहब्बत की वफ़ा ढूँढता हूँ

गिरह खोल के मोहब्बत की वफ़ा ढूँढता हूँ
दिलकश वादों में आज कई दफ़ा ढूँढता हूँ

मेरी तशनगी का गवाह  बना है ज़र्रा-ज़र्रा
कभी समंदर करे  क़तरे से ज़फा ढूँढता हूँ

सितारे लिपट के चाँंद से मिलते क्यों नहीं
रहते क्यूँ है?सदा फ़लक से खफ़ा ढूँढता हूँ

देखा था तुझे किस्मत की लकीरों में मैंने
जुदा हो गया हिसाब से वो सफा ढूँढता हूँ

Tribute to Ghalib

 Tribute to Ghalib

गा़लिब तेरी  इबारत की  इक अलहदा रीत है
तेरा उस दौर का इश्क मेरी इस दौर की प्रीत है

तेरी फक्कड़ फकीरी रही सदा बेज़ार फिक्र से
मेरी मस्त मौला मस्ती में भी बस तेरी ही जीत है

हजारों ख़्वाहिशे ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले
बेशक सारे जहाँ में यही सब से हसीन इक गीत है

तुम ख़त लिखो ग़ालिब और तुम्हें जवाब हो मालूम
मेरी तकदीर में देख तूँ इक तरसाता सा  मीत है


Monday, December 5, 2016

ढाल के नजरों में उदासीयां देख ना उसको

ढाल के नजरों में उदासीयां  देख ना उसको
वो तन्हा है तो सितारों का साथ है किसको ?
मुस्कुराता रहता है वो तो हर किसी को देखकर
दुश्वारियां चाँद की है मगर समझाए किस किसको

Sunday, December 4, 2016

आ गया हूँ मोहब्बत की पनाहों में मैं

आ गया हूँ मोहब्बत की पनाहों में मैं
अब ना रुसवाईयों का कोई गिला देना

ताउम्र तरसा है फ़क़त वसल के लिए
मिले इश्क तुम्हें अगर हमें मिला देना

उजड़ा हुआ दयार ना बन जाए दिल मेरा
महकता फूल इस गुलशन में  खिला देना

तुम्हें चाहा है और चाहता ही रहूँ उम्र भर
मेरी इबादत बस इस तरह का सिला देना

बन जाऊँंगा कभी तेरे दर के भी काबिल
हो इजाज़त तो हमें ख़ुद से मिला देना



Sunday, November 27, 2016

On the live concert of "Dr. Vivek Ranga" मौसिकी से वो बेहतर

On the live concert of  "Dr. Vivek Ranga"

मौसिकी से वो बेहतर रिश्ता निभा रहा था
जैसे ग़ज़ल का हर लफ़्ज़  सँवार रहा था

कभी बाँध देता था उसके पग में घुँघरू
कभी मुरकियाँ सी कानों में डाल रहा था

शब रुक-सी गई थी  महफिल में आकर
चाँद चौदहवीं का भी बेक़रार जा रहा था

मैंने देखा सरे-आम उस के सुरों का जादू
लफ्ज़-लफ्ज़ को उसका मकाम दिखा रहा था

Thursday, October 13, 2016

अल्फाज़ मे

अल्फाज़ में जो तारीफ बसी है वो तुम हो ....
मेरी कशमकश पेशतर लफ्ज़ के कुछ कहूँ तो कैसे ?

Monday, September 26, 2016

मुआफिक नहीं है ये इलाज़

मुआफिक नहीं है ये इलाज़ ग़र तेरे मर्ज़ को .....
किसी और नज़रिए से  देख ज़िंदगी के कर्ज़ को ....

तमाम चारागर को बख्शी नहीं तौफी़क एक सी ....
इलाही यहां समझे कौन है इबादत के फर्ज़ को ....

Sunday, September 25, 2016

वो 'दर्द' सोच भी ले तो

वो 'दर्द' सोच भी ले तो हमारी यह हालत होती है .....
सलवटे दिल में पड़़ती है और सांसे गहरी होती हैं.......

Tuesday, September 13, 2016

अपना वजूद ताउम्र ढूंढता ही रहा

अपना वजूद ताउम्र ढूंढता ही रहा  'नितिन' .....
इसी मुगा़लते मैं किसी और की ज़िंदगी जी गया .......

उस के दिल में प्यार था प्यार है मुझे खबर है
क्यों इजहार के वक्त वह अपने लब सी गया

उसके हौसले में कुछ तो कमी छोड़ी थी तूने
खुदाया कमोबेश उसकी  सजाये मै जी गया

अब हो कलाम या हो सजदा या फिर दीदार
मगर था जो जहर जुदाई का वो मैं पी गया

Monday, September 12, 2016

क्यों खुद से खफ़ा हो बैठे

क्यों खुद से खफ़ा हो  बैठे चंद गुनाह करके ......
वो दरिया दिल तो किसी को कुछ कहता ही नहीं.....

Thursday, September 8, 2016

अल्फाज़ तो दीवाने होते है


अल्फाज़ तो दीवाने होते है .....
मुंतज़िर हुस्न ओ ज़माल के ....
बहने लगते है पिघल कर ....
जलवाग़री ए हसीँ ख़्याल के .....

Sunday, September 4, 2016

Impressed and Inspired by a friend's photo

Impressed and Inspired by a friend's photo.

वो काई की दीवारों का साथ पाकर भी खुश हो जाती है
फुटपाथ पर खंबे सहारे खड़े होकर भी खुश हो जाती है

उसकी आँखों की चमक का इक अंदाज़ खास है
वो भीतर की रोशनी बिखरा कर भी खुश हो जाती है

उसकी मुस्कान बेशक कत्ल कर दे हजारों लाखों को
वो बन के ज़िंदगी दीवानों की भी खुश हो जाती है

खुशी बनती है भीतर उसके किसी कारखाने की तरह
वो दोस्तों में खुशी लुटा कर भी  खुश हो जाती हैं

Tuesday, July 19, 2016

की ..सरकशी का हौसला चाहिए

की ..सरकशी का हौसला चाहिए दिलक़शी के लिए भी ...
राह चलते शोहदे रांझा नहीं बना करते ...

Saturday, June 4, 2016

चलना चलना चलना

चलना चलना चलना
बस चलते ही जाना
यही है कहानी मन की
चलता है
भागता है
केवल मन
हम समझते हैं
जिंदगी पे आयी है बन

जैसे गाड़ी में बैठा
बच्चा कहता है
दौड़ रहे हैं खंबे
भाग रही है धरती
ऐसा ही तो नही
जिंदगी करती ?

वैसे ही मन
दौड़ रहा है
भीतर कुछ-कुछ
जोड़ रहा है
पर जिंदगी सारी
छोड़ रहा है

जिंदगी तो
बाहें फैलाए खड़ी है
प्रीत की लगाये झडी़ है
इक हम है बस
मन की पड़ी है

मन चंचल नासमझ
भटकाता है हमें
जो पाया नहीं उसमें
उलझाता है हमें
सब कहता है बस जिंदगी
नही समझाता है हमें

जीने ही नहीं देता
वह पल जो अभी है
कहता तो है तेरे
साथ सभी है
जतलाता मगर
कभी-कभी है

मन में भरा सदा
अगम अतीत
जीवन  है ...
नहीं होता प्रतीत
जिंदगी खड़ी खड़ी
जाती है बीत
कर ही नहीं पाते हम
इससे प्रीत
कब बदलेगी ?
यह मन की रीत
जिंदगी जाएगी
कब जीत ?
कब बनेगी ?
वो मेरे मन की मीत

    

Saturday, May 21, 2016

लू ००० सी लग गयी है

लू ००० सी लग गयी है अल्फ़ाज़ को कहीं .....
ठंडे, शांत और ठहरे से मिलते ही नहीं कहीं .....        😀