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Thursday, May 31, 2012

हम बेघरों को घरों में बसने की आदत नहीं

31-05-2012
06:10 PM
हम बेघरों को घरों में बसने की आदत नहीं
आवारा बहते है इन हवाओं के साथ

कभी बर्क से  दिल्लगी, कभी शर्त  अब्र से
कौन चलता है पहले इन घटाओं के साथ

जुगनुओं से खेले, कभी तितलियों को छुआ
फूलों से खिलते रहे इन फिज़ाओं के साथ

सहरा को पुचकारा, कभी समंदर को ललकारा
कौन छुपता है पहले इन पनाहों के साथ

बंदगी को बहलाया, कभी सादगी को नहलाया
कौन बचता है पहले इन गुनाहों के साथ

Monday, May 28, 2012

रूठे-रूठे से है वो, हम भी खफ़ा-खफ़ा से

28-05-2012
12:15 PM
रूठे-रूठे से है वो, हम भी खफ़ा-खफ़ा से है 
इसी कशमकश में है की आख़िर मामला क्या है ?

तेरे दिल की जो धड़कन है मेरे दिल में धड़कती है 
दिल फिर क्यूँ  पूछता है की आख़िर फ़ासला क्या है ?

सब कुछ है पास मेरे कोई जुस्तज़ू , आरज़ू भी नहीं 
ये आसमां क्यूँ  पूछता है की आख़िर माँगता क्या है ?

मेरा इश्क़ कम नहीं और तेरी मोहब्बत कम नहीं 
कोई फ़िर  भी पूछता है की आख़िर  जानता क्या है ?

Friday, May 18, 2012

ग़र इजाज़त हो हज़ूर इक टुकड़ा ख्व़ाब मांगता हूँ

ग़र इजाज़त हो हज़ूर इक टुकड़ा ख्व़ाब मांगता हूँ
अपनी खुश-नसीबी  ज़ेर-ए -जनाब मांगता हूँ
मेरी तकदीर का कोई पन्ना ग़र पड़ा है तेरे पास
तो उस पे लिखी इबारत का जवाब मांगता हूँ  

मेरे अश्क़ जो मुस्करा के पलकों से गिरे

14-05-2012
11:30 PM
मेरे अश्क़ जो मुस्करा के पलकों से गिरे 
तमाम मेरे ग़मों की ज़िंदगी सँवर गई 

इतना क़रीब आकर उसने छुआ था मुझे 
मेरे ज़ेहन में उसकी खुशबू  बिखर गई

तक़दीर का अफ़साना मुझ को पता न था 
मिल कर  उस से मेरी ज़िंदगी बदल गई 

अब देखता है क्या इस ग़मगीन जहाँ में 
इक आह-सी आई और आके गुज़र गई  

Thursday, May 17, 2012

वो भीगे हुए लम्हे सूखे नहीं है अब तक

17-05-2012
09:15 AM
वो भीगे हुए लम्हे सूखे नहीं है अब तक 
लड़कपन की पहली बारिश में साथ बिताये थे 

लरज़ उठे थे जज़्बात-ओ-एहसास उस वक़्त 
पहली बार जब हमने हाथ मिलाये थे 

न कुछ मैं कह सका न कुछ तुम कह पाए 
कुदरत ने झूम-झूम के कितने गीत गाये थे 

इक मैं था, इक तुम थे और किसका था वजूद ?
हाँ चाँद, सितारे, बादल,घटाएं सब मिलने आये थे 

मैं तो वाकिफ़ न था दुनिया के किसी फ़रेब से 
सारे नज़ारे मुझे बस जन्नत दिखाने आये थे  

Monday, May 14, 2012

मैं लूटने तो न आया था ख्यालात तेरे

मैं लूटने तो न आया था ख्यालात तेरे 
क्यूँ पशेमाँ कर रहे है सवालात तेरे 
गर ढूँढना है दिल तो "उसके" पास जा 
यहाँ अपना ही कुछ बचा नहीं पास मेरे 

देखूँ जो तुम्हें तो कोई बात याद आये

19-05-1995
02:00 PM
देखूँ  जो तुम्हें तो कोई बात याद आये 
फसल-ए-बहार याद आये और माहताब याद आये

 महव हो चुका था तन्हाँ तवील रातों में 
मुद्दतो बाद कहाँ मुझे जज़्बात याद आये 

परेशां तम्हारी ज़ुल्फ़ मेरे जज़्बात की तरह 
किस खातिर अब मुझे ये सवालात याद आये 

पलकों से उतरकर शबनम जो रुखसार पर पड़ी 
तुम्हारी आँखों के मुझे वो सवालात याद आये 


मुझसे नज़दीकियां बढाने की कोशिश न करो

मुझसे नज़दीकियां बढाने की कोशिश न करो 
गम के सागर में तुम डूब जाओगे 
इससे पहले की समझ पाओ  मुझे 
ख़ुद अपने आप को तुम भूल जाओगे 

बड़ी आम सी गुज़र रही है ज़िंदगी

13-05-1992
04:20 PM
बड़ी आम सी गुज़र रही है ज़िंदगी 
कुछ यहाँ  पर मैं ख़ास चाहता हूँ 

पत्थरों से खेलना शौक़ नहीं मेरा 
नाज़ुक से सुर्ख़ रुखसार चाहता हूँ 

उजाले ढलें कहीं काली घटाओं में 
बेतरतीब ज़ुल्फों की कतार चाहता हूँ 

नज़दीक आऊँ इस तरह बेखुदी के मैं 
धड़के दिल मेरा बे-इख्तियार चाहता हूँ

सहला सकूँ मैं कुछ जज़्बात अपने 
हँसी ऐसा कोई हमराज़ चाहता हूँ  

दौलत की जुस्तज़ू न तमन्ना शोहरत की है 
या इलाही मैं थोड़ा-सा प्यार चाहता हूँ  

Thursday, May 10, 2012

ये अँधे, ये तपते, ये जलते जज़्बात

04-05-1995
10:00 PM
ये अँधे, ये तपते, ये जलते जज़्बात 
घिसटते, फिसलते ये गिरते जज़्बात 

जज़्बात क्या कहे जज़्बात की कहानी 
हर मक़ाम पर ये बदलते जज़्बात 

चले आते है मासूम से पर जाने क्यूँ 
तोड़ जाते है दम ये घुटते जज़्बात 

जज़्बात वो मचलता दिल है जिससे 
चाहिए किसे है ये सस्ते जज़्बात 

नामुराद शराब ने है मारा मुझ को

26-03-1994
12:45 AM
नामुराद शराब ने है मारा मुझ को 
वरना तो हर हुस्न का है इशारा मुझको 

संगदिल जहाँ  में सब बेवफ़ा थे मगर 
ज़िंदगी में मिला इसका है सहारा मुझको 

जीता तो फिर किसके लिए जीता 
ख़ातिर इसके ही जीना है गँवारा मुझको 

इसको दी दिलासा, हौंसला उसे भी दिया 
ले-दे के ग़म उठाना है सारा मुझ को 

हसरत-ए-ज़िस्म को मोहब्बत का पैकर बनाने वाले

10-05-2011
11:00 AM
हसरत-ए-ज़िस्म को मोहब्बत का पैकर बनाने वाले
ज़माने में देखे है मोहब्बत को रुसवा करने वाले

दैर-ओ-हरम में जाकर अपना सर झुकाने वाले
वजूद-ए-बशर का क़त्ल सरेआम करने वाले

देते है नसीहत सदा दामन-ए-पाक़  की हमें
अपने ज़मीर पे सौ-सौ पैबंद लगाने वाले

तेरा नसीब है जो तुझ को मिल कर  रहेगा
बनते है कई ख़ुदा, तुझको रहमत देने वाले

मेरा इश्क गवाह है तुझको हाज़िर-नाजिर जान के
'नितिन' जिया है तेरे लिए "ओ" जिंदगी देने वाले