31-05-2012
06:10 PM
हम बेघरों को घरों में बसने की आदत नहीं
आवारा बहते है इन हवाओं के साथ
कभी बर्क से दिल्लगी, कभी शर्त अब्र से
कौन चलता है पहले इन घटाओं के साथ
जुगनुओं से खेले, कभी तितलियों को छुआ
फूलों से खिलते रहे इन फिज़ाओं के साथ
सहरा को पुचकारा, कभी समंदर को ललकारा
कौन छुपता है पहले इन पनाहों के साथ
बंदगी को बहलाया, कभी सादगी को नहलाया
कौन बचता है पहले इन गुनाहों के साथ
06:10 PM
हम बेघरों को घरों में बसने की आदत नहीं
आवारा बहते है इन हवाओं के साथ
कभी बर्क से दिल्लगी, कभी शर्त अब्र से
कौन चलता है पहले इन घटाओं के साथ
जुगनुओं से खेले, कभी तितलियों को छुआ
फूलों से खिलते रहे इन फिज़ाओं के साथ
सहरा को पुचकारा, कभी समंदर को ललकारा
कौन छुपता है पहले इन पनाहों के साथ
बंदगी को बहलाया, कभी सादगी को नहलाया
कौन बचता है पहले इन गुनाहों के साथ