19-05-1995
02:00 PM
देखूँ जो तुम्हें तो कोई बात याद आये
फसल-ए-बहार याद आये और माहताब याद आये
महव हो चुका था तन्हाँ तवील रातों में
मुद्दतो बाद कहाँ मुझे जज़्बात याद आये
परेशां तम्हारी ज़ुल्फ़ मेरे जज़्बात की तरह
किस खातिर अब मुझे ये सवालात याद आये
पलकों से उतरकर शबनम जो रुखसार पर पड़ी
तुम्हारी आँखों के मुझे वो सवालात याद आये
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