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Friday, May 18, 2012

मेरे अश्क़ जो मुस्करा के पलकों से गिरे

14-05-2012
11:30 PM
मेरे अश्क़ जो मुस्करा के पलकों से गिरे 
तमाम मेरे ग़मों की ज़िंदगी सँवर गई 

इतना क़रीब आकर उसने छुआ था मुझे 
मेरे ज़ेहन में उसकी खुशबू  बिखर गई

तक़दीर का अफ़साना मुझ को पता न था 
मिल कर  उस से मेरी ज़िंदगी बदल गई 

अब देखता है क्या इस ग़मगीन जहाँ में 
इक आह-सी आई और आके गुज़र गई  

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