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Monday, May 28, 2012

रूठे-रूठे से है वो, हम भी खफ़ा-खफ़ा से

28-05-2012
12:15 PM
रूठे-रूठे से है वो, हम भी खफ़ा-खफ़ा से है 
इसी कशमकश में है की आख़िर मामला क्या है ?

तेरे दिल की जो धड़कन है मेरे दिल में धड़कती है 
दिल फिर क्यूँ  पूछता है की आख़िर फ़ासला क्या है ?

सब कुछ है पास मेरे कोई जुस्तज़ू , आरज़ू भी नहीं 
ये आसमां क्यूँ  पूछता है की आख़िर माँगता क्या है ?

मेरा इश्क़ कम नहीं और तेरी मोहब्बत कम नहीं 
कोई फ़िर  भी पूछता है की आख़िर  जानता क्या है ?

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