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Saturday, September 29, 2012

मेरा मुद्दा है क्या ? तूँ जान तो ले

14-01-2010
10:30 AM
मेरा मुद्दा है क्या ? तूँ जान तो ले
नज़दीकियाँ बढा मुझे पहचान तो ले

दिल की धड़कन है या कोई शोर
बढा के हाथ ख़ुद  ये जान तो ले

मौक़ा मिला तो लूट भी लेना मुझको
दिल से एक बार अपना मान तो ले

दिल भी हिस्सा है इसी जिस्म का
छेड़  के सुरों को कोई तान तो दे

खेल बाद में खेल लेगी दुनिया अपना
मोहब्बत एक बार दिल में ठान तो ले 

Friday, September 28, 2012

ज़रा सी बात पर वो रूठ कर चला गया

ज़रा सी बात पर वो रूठ कर चला गया
सदिया लग गई फिर उसे मनाने में

मैंने मज़ाक में उसे ईमान कह दिया
वो लौट के आया न फिर ज़माने में

मिटने में उसने इक पल न गंवाया
मेरी उम्र बीत गयी उसे बनाने में

अब बीत गया वो पल जो भारी था
बाकी बस  तड़प बची है सुनाने में 

तेरी चाहतों के समंदर से इक मोती माँग के देखेंगे

तेरी चाहतों के समंदर से इक मोती माँग के देखेंगे
मोहसिन - कभी तेरा इनायत-ए- करम  देखेंगे 

तक़दीर की बात छोड़ के तूँ मौज ले प्यारे

तक़दीर की बात छोड़ के तूँ मौज ले प्यारे
नसीब रख के एक तरफ़ तूँ  खोज ले प्यारे
देने वाले ने उदासी और मुस्कराहट दे दी
तेरी मर्ज़ी है अब किसको तूँ रोज़ ले प्यारे 

Tuesday, September 25, 2012

पलकों पे सज़ाने के लिए कुछ ख़्वाब भेजूँगा

पलकों  पे सज़ाने के लिए कुछ ख़्वाब भेजूँगा
हाँ तुझे तस्वीरों की भी इक क़िताब भेजूँगा
बच्चों की तरह अब ज़िद करना छोड़ दे
अगले ख़त में तुझे नींद का सैलाब भेजूँगा 

Monday, September 24, 2012

मंज़ूर है तेरा आना शहर में मौसम की तरह

मंज़ूर है तेरा आना शहर में मौसम की तरह
कभी सर्द लहज़ा दे,कभी बरस मोहब्बत की तरह

सिलसिले फासलों के चले तो इल्म हुआ मुझे

सिलसिले फासलों के चले तो इल्म हुआ मुझे
खुद से कितनी दूर निकल चुका था मैं

Wednesday, September 19, 2012

फ़रेब-ए-इश्क़ को इस तरह से जिया है मैंने


18-09-2012
01:30 PM
फ़रेब-ए-इश्क़ को  इस तरह से जिया है मैंने
सादगी को नाम मोहब्बत का दिया है मैंने

जाम-ए-दोस्ती को जब भी रक़ीब ने बढाया 
शराफ़त  से बस लबों से लगा लिया है मैंने

ख़लूस-ए-इश्क़ कहीं बेक़दर  न हो जाये
इज़हारे-इश्क़ को दफ़न कर  लिया है मैंने

मेरा मोहसिन, मेरी मंज़िल, मेरा मक़सूद है तूँ
शामिल तुझे ज़िंदगी में कर लिया है मैंने

भेजे है लाख़ इशारे मोहब्बत में भिगो के
तेरे वजूद से लिपटे रहे सकूँ कर लिया है मैंने

 

Sunday, September 16, 2012

भीगा हुआ बदन वो बरसात का समाँ

15-08-2009
07:00 AM
भीगा हुआ बदन वो बरसात का समाँ
भूले नहीं भूलता कल रात  का समाँ

कपकपाते होंठ वो लरज़ता हुआ जिस्म
रुखसार पर  बूँदे वो फ़ुहार का समाँ

अबरू के शिकन वो बाँहों के घुमाव
आँचल को निचोड़ वो निखार का समाँ

कलियों का महकना वो फ़ूलों का बहकना
मदहोश-सा कर गया वो बहार का समाँ

यूँ तो कट रही है मसरुफियत से ज़िंदगी
जीने का लुत्फ़ दिला गया वो प्यार का समाँ
 

सोचता हूँ तुमसे ये कहूँ वो कहूँ सब कुछ कहूँ

02-12-2010
11:15 PM
सोचता हूँ तुमसे ये कहूँ वो कहूँ सब कुछ कहूँ
मगर करता हूँ तुमसे प्यार ये मैं कैसे कहूँ  ?

मरासिम हों गहरे तो इज़हार में वक्त लगता है
ग़र इज़हार ना करूँ तो ज़िंदा मैं कैसे रहूँ  ?

तुम्हारी नज़रें भी तन्हाँ कर सकती है मुझे
जाम हाथ में ले, डूबा शराब में कैसे रहूँ  ?

फनाँ होना मेरी मंज़िल, मेरा शौक़ जान इसे
कहाँ तक बचूँ और सलामत मैं कैसे रहूँ  ?
 

इक लम्हा सिसकता रहा तेरे इंतज़ार में

इक लम्हा सिसकता रहा तेरे इंतज़ार में
मेरा तज़रबा था, वो बच न पाया इस हाल में

वो क़ायल वस्ल का, मेरा नसीब हिज़र है
बेचारा ! इज़हार  ढूँढ ना  पाया इनकार में

उसे फ़िक्र नहीं कब आया कब चला गया
मुझे परवाह कँहा, मैं खोया हूँ तेरे ख़याल में

वो ख़ामोश सा ही कुछ बोलना चाहता था मुझे
मेरी तवज्जो थी कभी छत पे कभी दीवार में

वो जाते-जाते छोड़ गया इक शिकवे का निशाँ
लगता है तेरे दर  पे मैं आ गया बेकार में



 

Friday, September 14, 2012

मेरे जज़्बात-ओ-अल्फ़ाज़ का लिहाज़ कौन करे ?

मेरे जज़्बात-ओ-अल्फ़ाज़ का लिहाज़ कौन करे ?
मैं मिन्नत करूँ, कभी ये ख़ुदा ना करे

वस्ल की तकरीरों ने उलझा लिया जब हमें
तूँ बता हिज़्र का इस्तकबाल यँहा कौन करे ?

अनजान हो कोई तो उसे बता दूँ  सब कुछ
सब कुछ पहचाने जो, उसका चारा कौन करे ?

मेरे नसीब की बात है तो बुलंद हूँ मैं
परे नसीब से किसी का इंतज़ार कौन करे ?