इक लम्हा सिसकता रहा तेरे इंतज़ार में
मेरा तज़रबा था, वो बच न पाया इस हाल में
वो क़ायल वस्ल का, मेरा नसीब हिज़र है
बेचारा ! इज़हार ढूँढ ना पाया इनकार में
उसे फ़िक्र नहीं कब आया कब चला गया
मुझे परवाह कँहा, मैं खोया हूँ तेरे ख़याल में
वो ख़ामोश सा ही कुछ बोलना चाहता था मुझे
मेरी तवज्जो थी कभी छत पे कभी दीवार में
वो जाते-जाते छोड़ गया इक शिकवे का निशाँ
लगता है तेरे दर पे मैं आ गया बेकार में
मेरा तज़रबा था, वो बच न पाया इस हाल में
वो क़ायल वस्ल का, मेरा नसीब हिज़र है
बेचारा ! इज़हार ढूँढ ना पाया इनकार में
उसे फ़िक्र नहीं कब आया कब चला गया
मुझे परवाह कँहा, मैं खोया हूँ तेरे ख़याल में
वो ख़ामोश सा ही कुछ बोलना चाहता था मुझे
मेरी तवज्जो थी कभी छत पे कभी दीवार में
वो जाते-जाते छोड़ गया इक शिकवे का निशाँ
लगता है तेरे दर पे मैं आ गया बेकार में
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