18-09-2012
01:30 PM
फ़रेब-ए-इश्क़ को इस तरह से जिया है मैंने
सादगी को नाम मोहब्बत का दिया है मैंने
जाम-ए-दोस्ती को जब भी रक़ीब ने बढाया
शराफ़त से बस लबों से लगा लिया है मैंने
ख़लूस-ए-इश्क़ कहीं बेक़दर न हो जाये
इज़हारे-इश्क़ को दफ़न कर लिया है मैंने
मेरा मोहसिन, मेरी मंज़िल, मेरा मक़सूद है तूँ
शामिल तुझे ज़िंदगी में कर लिया है मैंने
भेजे है लाख़ इशारे मोहब्बत में भिगो के
तेरे वजूद से लिपटे रहे सकूँ कर लिया है मैंने
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