02-12-2010
11:15 PM
सोचता हूँ तुमसे ये कहूँ वो कहूँ सब कुछ कहूँ
मगर करता हूँ तुमसे प्यार ये मैं कैसे कहूँ ?
मरासिम हों गहरे तो इज़हार में वक्त लगता है
ग़र इज़हार ना करूँ तो ज़िंदा मैं कैसे रहूँ ?
तुम्हारी नज़रें भी तन्हाँ कर सकती है मुझे
जाम हाथ में ले, डूबा शराब में कैसे रहूँ ?
फनाँ होना मेरी मंज़िल, मेरा शौक़ जान इसे
कहाँ तक बचूँ और सलामत मैं कैसे रहूँ ?
11:15 PM
सोचता हूँ तुमसे ये कहूँ वो कहूँ सब कुछ कहूँ
मगर करता हूँ तुमसे प्यार ये मैं कैसे कहूँ ?
मरासिम हों गहरे तो इज़हार में वक्त लगता है
ग़र इज़हार ना करूँ तो ज़िंदा मैं कैसे रहूँ ?
तुम्हारी नज़रें भी तन्हाँ कर सकती है मुझे
जाम हाथ में ले, डूबा शराब में कैसे रहूँ ?
फनाँ होना मेरी मंज़िल, मेरा शौक़ जान इसे
कहाँ तक बचूँ और सलामत मैं कैसे रहूँ ?
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