Translate

Sunday, September 16, 2012

सोचता हूँ तुमसे ये कहूँ वो कहूँ सब कुछ कहूँ

02-12-2010
11:15 PM
सोचता हूँ तुमसे ये कहूँ वो कहूँ सब कुछ कहूँ
मगर करता हूँ तुमसे प्यार ये मैं कैसे कहूँ  ?

मरासिम हों गहरे तो इज़हार में वक्त लगता है
ग़र इज़हार ना करूँ तो ज़िंदा मैं कैसे रहूँ  ?

तुम्हारी नज़रें भी तन्हाँ कर सकती है मुझे
जाम हाथ में ले, डूबा शराब में कैसे रहूँ  ?

फनाँ होना मेरी मंज़िल, मेरा शौक़ जान इसे
कहाँ तक बचूँ और सलामत मैं कैसे रहूँ  ?
 

No comments:

Post a Comment