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Friday, March 9, 2012

खोद कर ज़मीन

 खोद कर ज़मीन इश्क बोया जाये
चलो मोहब्बत के पेड़ों तले सोया जाये

बहुत हो चुकी लहू की रवानगी
... मज़हब को लहू से न भिगोया जाये

हिन्दू-मुस्लिम होकर गुनाहगार बन गये
इंसानियत को अपनी अब धोया जाये

मरते रहे गर यूं लड़-लड़ कर हम
वजूद ही अपना न कहीं खोया जाये

मोहब्बत ही मोहब्बत हो हर इंसान में
सपना क्यूं न इक ऐसा संजोया जाये

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