खोद कर ज़मीन इश्क बोया जाये
चलो मोहब्बत के पेड़ों तले सोया जाये
बहुत हो चुकी लहू की रवानगी
... मज़हब को लहू से न भिगोया जाये
हिन्दू-मुस्लिम होकर गुनाहगार बन गये
इंसानियत को अपनी अब धोया जाये
मरते रहे गर यूं लड़-लड़ कर हम
वजूद ही अपना न कहीं खोया जाये
मोहब्बत ही मोहब्बत हो हर इंसान में
सपना क्यूं न इक ऐसा संजोया जाये
चलो मोहब्बत के पेड़ों तले सोया जाये
बहुत हो चुकी लहू की रवानगी
... मज़हब को लहू से न भिगोया जाये
हिन्दू-मुस्लिम होकर गुनाहगार बन गये
इंसानियत को अपनी अब धोया जाये
मरते रहे गर यूं लड़-लड़ कर हम
वजूद ही अपना न कहीं खोया जाये
मोहब्बत ही मोहब्बत हो हर इंसान में
सपना क्यूं न इक ऐसा संजोया जाये
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