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Saturday, March 17, 2012

मुद्दत से ज़िक्र नहीं है वफाओं का

मुद्दत से ज़िक्र नहीं है वफाओं का
बदला हुआ है रूख़ इन हवाओं का

बहारें आ भी जाती है, नहीं भी
मिलता नहीं पता इन फ़ज़ाओं का

गुनाह जिंदगी से हुआ भी  नहीं
गुलिस्ताँ खिल रहा है सज़ाओं का 

हुस्न वाले बा-वफ़ा भी होते है
सताया हुआ हूँ मैं इन अदाओं का

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