मुद्दत से ज़िक्र नहीं है वफाओं का
बदला हुआ है रूख़ इन हवाओं का
बहारें आ भी जाती है, नहीं भी
मिलता नहीं पता इन फ़ज़ाओं का
गुनाह जिंदगी से हुआ भी नहीं
गुलिस्ताँ खिल रहा है सज़ाओं का
हुस्न वाले बा-वफ़ा भी होते है
सताया हुआ हूँ मैं इन अदाओं का
बदला हुआ है रूख़ इन हवाओं का
बहारें आ भी जाती है, नहीं भी
मिलता नहीं पता इन फ़ज़ाओं का
गुनाह जिंदगी से हुआ भी नहीं
गुलिस्ताँ खिल रहा है सज़ाओं का
हुस्न वाले बा-वफ़ा भी होते है
सताया हुआ हूँ मैं इन अदाओं का
No comments:
Post a Comment