Translate

Saturday, March 10, 2012

शायर तेरा नसीब

शायर तेरा नसीब मुझे अजीब सा लगता है
ग़म से तेरा रिश्ता मुझे नज़दीक सा लगता है

अपने ही तब्बस्सुम से बेचैन हो उठता है कभी
कभी तमाम उदासीयों  का रक़ीब सा लगता है

किस्से किस तरह तेरे अजीबतर हो रहे है
वजूद ही तेरा अब मुझे तक़सीम सा लगता है

कितने धोखे मिले ज़माने से अब तक
सादा  दिल ही रहा मुझे शरीफ़ सा लगता है 

शायर तेरा नसीब मुझे अजीब सा लगता है
ग़म से तेरा रिश्ता मुझे नज़दीक सा लगता है

No comments:

Post a Comment