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Thursday, June 15, 2017

मिट्टी चट्टन दे दिन फेर आ गए


08-03-2012
02:15 AM

मिट्टी चट्टन दे दिन फेर आ गए
असाँ ताँ इस मिट्टी ने परमाँ लए

हँजुआ च पिजदा ए वजूद मेरा
हँजू सुक्कन दे  दिन होर अा गए

इश्के दी खातर सारा डेरा है लगया
तेरे इश्के विच्च सारे ताँ पूर पा लए

अपने नाँ ते कित्ता इतबाार इक वार
चट्ट सारे नाँ तेरे, मेरे अग्गे आ गए

नशे में मैं बस बहकता ही रहूँ

नशे में मैं बस बहकता ही रहूँ
मय आँंखों से तेरी छलकती रहे

चांदनी वो मैं पीता ही रहूँ
बदन से तेरे जो फिसलती रहे

खुशबू में मैं महकता ही रहूँ
ज़ुल्फ़ जो तेरी उड़ती रहे

नगमा वो मैं सुनता ही रहूँ
पायल जो तेरी बजती रहे

मोहब्बत मैं मनाता ही रहूँ
इश्क मेरे में जो सजती रहे

Saturday, May 6, 2017

बचपन में खेलना पतंगों से याद आता है

For Gauri
11:04:2016
10:15 PM

बचपन में खेलना पतंगों से याद आता है
इ-इमली ऊ-उल्लू ऋ-ऋषि याद आता है

कंचों की चरमराहट में खेलना मिट्टी से
वो लंगड़ी टांग वो चोर सिपाही याद आता है

ढ-ढक्कन से ढक जाता था दिमाग सारा
अँ - खाली से सब खाली रह जाना याद आता है

ब-बस तक मैं पहुंच नहीं पाया कभी भी
ओ-ओखली में अपना सर देना याद आता है

Wednesday, May 3, 2017

फुरसत भी हो ...... तनहाई

फुरसत

भी हो ......

तनहाई

भी हो .......

ऐसे में ताजा हवा का झोंका

छू जाए वजूद को
.
.
.
.
.
.

दो लफ़्ज़

हो मेरे पास .....

इक तुझ में

खो जाएं कहीं ......

और ढूंढता फिरे

महबूब को......

तू आने की बात करके दिल को यूँ

तू आने की बात करके दिल को
यूँ भरमाया ना कर ....
ये बेसाख्ता उछलता है फिर
तेरे ख्वाब देख कर .....

वो वाकिफ नहीं है मेरे ख्वाबों की शिद्दत से

वो वाकिफ नहीं है मेरे ख्वाबों की शिद्दत से  शायद.....
इक बार ख्वाब में आया तो फिर निकल नहीं पाया......

Sunday, April 16, 2017

आ खोलें दिल का दर्द

आ खोलें दिल का दर्द दोनों अपना .......
मुद्दत हुई दर्द को दर्द से मिले हुए .........

Sunday, April 2, 2017

फांस ...... मेरे हाथ में ही फंसी थी..

फांस ......

मेरे हाथ में ही

फंसी थी.....

मगर.......

उस एहसास का क्या ?

छुए कोई भी .......

मुझे दर्द होता है......

Thursday, March 30, 2017

फितरत ए दिमाग के मुग़ालते कुछ और हैं

फितरत ए दिमाग के मुग़ालते कुछ और हैं......
शख्सियतें  बज़ाहिर कुछ और  हकीकतन कुछ और है .......
औरत और मर्द के तक्सीम के नहीं कुछ मायने इसमें.......
इरादे सबके अभी कुछ और कभी कुछ और हैं........

Monday, March 27, 2017

जुनूँ जज्बात का बिखरता है शिद्दत ए धड़कनों से मिल के

जुनूँ जज्बात का बिखरता है शिद्दत ए धड़कनों से मिल के .....
वजह हादसे ही नहीं है उन्वान ए नज़्म ओ ग़ज़ल के ......

Thursday, March 23, 2017

स्वच्छता गीत ( गौरी के जन्मदिवस पर)


स्वच्छ रहे भारत हमारा
स्वच्छ रहे हर प्रांत
स्वच्छता नगर नगर बसे
स्वच्छ रहे हर गांव

स्वच्छता का आरंभ जहां
लक्ष्मी का वहाँ वास
उन्नति के पथ पर चले
हो समग्र का विकास

स्वच्छ रहे भारत हमारा
स्वच्छ रहे हर प्रांत
स्वच्छता नगर नगर बसे
स्वच्छ रहे  हर गांव

जय भारत  जय भारत  जय भारत

Tuesday, February 7, 2017

तेरी शोखियां दम भरती हैं

तेरी शोखियां दम भरती हैं मेरी निगाहों के सामने ....
क्यों मसोसता है दिल को तू मेरे करीब आने पे .....

Monday, February 6, 2017

एक मुट्ठी अंधेरा मांग रहा था वो

एक मुट्ठी अंधेरा मांग रहा था वो
मैं जाहिल शमां बुझाने चल दिया
अंतस का अंधकार मांग रहा था वो
और मैं? मैं उजाला मिटाने चल दिया

Thursday, February 2, 2017

शब्दों की टोकरी लिए आ जाते हैं लोग

शब्दों
की टोकरी
लिए आ जाते हैं लोग
मेरे दिल के दरवाजे पर
दुकान सजाते हैं लोग

तुम एक
मुस्कुराहट से ही
मेरे दिल में उतर गई
भीतर आने के लिए
बहुत चिल्लाते हैं लोग

सोए हुए अरमान
और खोए से जज्बात
न जाने क्यों इतना
शोर मचाते हैं लोग

लूट लेना मुझे बेशक
बहुत आसान है मगर
लूट लेने के ख्वाब
क्यों सजाते हैं लोग

मुझे परवाह है
हर लम्हा निगाह की तेरी
अपनी नजरों से मेरा
मोल क्यों लगाते हैं लोग

तू खामोश है
एक कदम बढ़ा भी ना सके
मैं इंतजार में खड़ा तेरी
बीच में आ जाते हैं लोग

तू बेवफा समझे मुझे
मौका वफा का दिए बगैर
मैं चुपचाप हूं फिर भी
तेवर दिखाते हैं लोग

तू समझे है मुझे मगर
खुद से अनजान होकर
मैं समझता हूं तुझे
आकर यह बताते हैं लोग

बनके महक
लिपटा हूँ रूह से तेरी
खुशबू बताती है मुझे
तेरे दर से जब आते हैं लोग

तू सामने मेरे
मैं सामने तेरे
हम मिलकर भी ना मिले
बस यही तो चाहते हैं लोग

तू मुझ में है सदा
मैं तुझ में हूं सदा
कभी अपना कभी पराया
तो बन जाते हैं लोग

ना जिस्म है तू
ना निगाह हूं मैं
मगर इक पाक सी मोहब्बत
कहां समझ पाते हैं लोग

Sunday, January 15, 2017

कोई धूप छोड़ गया है मेरे

कोई धूप छोड़ गया है मेरे हिस्से में
भर-भर झोलीयाँ खुद पे वारता हूँ मैं
अपनी दीवानगी तो पहले कम न थी
नज़रों से उनकी नज़रें उतारता हूँ मैं

Friday, January 6, 2017

ज़िंदगी में जो ख़ला - सी है

ज़िंदगी में जो ख़ला - सी है
किसी और की ख़ता - सी है

मुझे पुकारती कसमसाहटें तेरी
तेरी फ़ितरत बेशक बला - सी है

ख़ामोशियां कहती है कुछ तो
अल्फाज़ से मगर ख़फा - सी है

जफा़ ऐसे बिखरी हयात में
वफ़ा अब इक सज़ा - सी है

अक्स देता है आईना तुम्हें
ज़ाहिर मगर कज़ा - सी है