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Tuesday, February 28, 2012

मुझसे नज़दीकियां

23-08-1994
06:15 PM
मुझसे नजदीकियां बढाने की कोशिश न करो
ग़म के सागर में तुम डूब जाओगे
इससे पहले की तुम मुझे समझ पाओ
खुद अपने आप को तुम भूल जाओगे

मुहब्बत की रुसवाई न पाई? हद हो गयी

20-08-1994
05:10 PM
मुहब्बत की रुसवाई न पाई? हद हो गयी
इश्क में नाकामी न पाई? हद हो गयी

अज़ी नाकामी तो मंज़िल है मुहब्बत की
मुहब्बत की मंज़िल न पाई? हद हो गयी

ख़ैर निभाता तो कौन?यहाँ मुहब्बत करके
साथ निभाने की कसम न खाई? हद हो गयी

बचाता तो कौन तुम्हे ग़र्क होने से
आशियाने में आग न लगाई? हद हो गयी  

पुतला में मिट्टी दा हाँ

16-09-1991
03:00 PM
पुतला में मिट्टी दा हाँ
ते मिट्टी विच मिल जाना है
कानू बनाया इस मिट्टी दा
इसी कशमकश विच मर जाना है
जे मिल सकी ना तेरी मिट्टी मेरी नाल
इक मिट्टी च ता असी मिल जाना है
जे मिल ही गयी ऐ दो कड़ी दी जिंदगी
प्यार दे सहारे असां जी जाना है
खोला क्यों मैं दर्द दिल दा तेरे अगे
असां सब तो अपना दर्द छुपा जाना है

Saturday, February 25, 2012

मुझे दुश्मन बना लो कोई अपना

05-10-1994
07:15 PM
मुझे दुश्मन बना लो कोई अपना
के दोस्तों से अब डर लगता है

जहां में कोई गुनाह हम करे न करे
क्यूं हर इल्ज़ाम हमारे सर लगता है

इससे दुश्वार और क्या दिन आएंगे
पत्तों पे बिगड़ता हुआ शज़र लगता है

आप तो थे अहले- वफ़ा क्या हुआ ?
बेमुरव्वत ज़माने का असर लगता है

तेरी शिकायतों में तेरा प्यार छुपा लगता है

25-02-2012
10:00 PM
तेरी शिकायतों में तेरा प्यार छुपा लगता है
दिल की धड़कनों में इसका इज़हार छुपा लगता है

बेशक सताया होगा तुझे ज़माने ने बहोत
इन सितमों में ही  तेरा  करार छुपा लगता है

हाँ खेला होगा कोई तेरे दिल से भी ज़रूर
लुत्फ़ उठाया तुने,कोई फ़नकार छुपा लगता है

जितना भी दूर लिखने की कोशिश हो मेरे "दोस्त"
उसके इर्द-गिर्द ही तेरा संसार छुपा लगता है

Friday, February 24, 2012

जिंदगी जीकर ही तो मौत का इस्तकबाल करते है

24-04-2012
09:40 PM
जिंदगी जीकर ही तो मौत का इस्तकबाल करते है
खुशदिली से जीने वाले कभी मौत से डरते है ?

मौत भी तो एक सच है इस जिंदगी की तरह
आज जिंदगी की आगोश, कल मौत की चलते है

ख़ुदा को यकीन था मुझ पे, तो दे दी जिंदगी
उसने  दी जिंदगी हम   इबादत करते है

यूं तो जो चाहो ले लो मुझसे ख़ुदा के वास्ते
न दुखे दिल किसी का इस गुनाह से डरते है

तेरे दर पे मोहब्बत की फ़रियाद लाया हूँ

23-08-1994
06:30 PM
तेरे दर पे मोहब्बत की फ़रियाद लाया हूँ
इक टूटा हुआ दिल और जज़्बात लाया हूँ

गिनने बैठो तो न गिन सको मेरे ज़ख्मों को
ऐसी अपने सितमों की सौगात लाया है

बचा रखना किसी तरह अपने चमन को
कुफ़र भरे कांटों की बरसात लाया हूँ

मेरे अपना यंहा कुछ भी तो न था
जो दिया ज़माने ने वो साथ लाया हूँ

Tuesday, February 21, 2012

मेरे इशारों का मतलब समझेगा वो

23-03-1994
01:00 PM
मेरे इशारों का मतलब समझेगा वो
इन दरारों का मतलब समझेगा वो

नज़दीक आएगा जब मेरे दिल के वो
इन शरारों का मतलब समझेगा वो

आग इश्क की जब भी लगेगी दिल में
इन बहारों का मतलब समझेगा वो

मेरे इश्क की खातिर चमकते है  जो
इन सितारों का मतलब समझेगा वो

मुझे यकीं है अपनी तहरीरों पर
मेरे अशआरों का मतलब समझेगा वो

मेरे दिल में आग लगा के मुस्कराते है वो

22-04-1994
07:00 PM
मेरे दिल में आग लगा के मुस्कराते है वो
पहले तो नज़र मिलते है, फिर नज़रें चुराते है वो

किसको पता?किसको ख़बर? कौन जनता है ये?
दीवाना बना कर अपना अब नाज़ दिखाते है वो

जीना मुहाल किया है पहली ही नज़र में मेरा
जैसे जानते नहीं ऐसे सामने से गुज़र जाते है वो

कैसी उल्फ़त? कैसा इश्क? कैसी मुहब्बत की रज़ा?
झटक के ज़ुल्फ़ों को किस कदर इतराते है वो

मैं फ़िराक में हूँ बस इक इशारे की उनकी
झुका के पलकें अदा से फ़कत शरमाते है वो

Monday, February 20, 2012

इक महजबीं का ही ग़म नहीं उठाता हूँ मैं

22-02-1994
10:00 AM
इक महजबीं का ही ग़म नहीं उठाता हूँ मैं
हर  इक शख्स का ग़मगुसार हूँ मैं

फ़कत ज़ुल्फ़-ए-परीशाँ नहीं सुलझाता हूँ मैं
मुकम्मल ज़ुल्मत-ए-हयात से परेशाँ हूँ मैं

धड़कता नही दिल मेरा इक शोख़ पर ही
हर इक हसीना पर जाँ-निसार हूँ मैं

वीराँ क्यूं रहे कोई भी मयखाना-ए-चश्म
हर नज़र से पैमाना छलकाए ऐसा मयख्वार हूँ मैं

महका जाये  जो  हर  गुल-बदन को
यकीँ जानिए ऐसी फ़स्ल-ए-बहार हूँ मैं

मेरा इश्क तभी परेशान रहा होगा

09-09-1994
11:10 PM
मेरा इश्क तभी परेशान रहा होगा
वो हुस्न इसका दरबान रहा होगा

वो लुभाता रहा होगा इसे वादों से
ये हर वादे पे कुरबान रहा होगा

किसको फ़ुरसत जो टटोलता मेरे दिल को
वो चोर इसका निगेहबान रहा होगा

मुझे नहीं ख़बर मेरा घर कहाँ गया
वो कमजर्फ़ मेरा मेहमान रहा होगा

Thursday, February 16, 2012

Philoshy of Love - II वो पुरजोश चीख !


27-05-1997
04:30 PM
मुझे याद है तुम्हारी
वो पुरजोश चीख !
जिसे न चाहते हुए भी तुम्हे
दबाना पड़ा था
अपने होठो पे सारी लाली
समेट के
अपने ही दांतों से उन्हें
गड़ाना पड़ा था  !

और अब उस चीख की गूंज
इक सपना बन कर तुम्हारे
शरीर में पल रही है

उस वक़्त जो आंसू ढुलक
आए थे तुम्हारे कपोलो पे
उन्होंने एक सजीव सपने का
रूप ले लिया है !

उन नमकीन मोतियों में जो
प्यार की मिठास थी
उसी मिठास के चलते तुम
ये सपना साकार कर सकती हो

हाँ  ! तुम माँ बन सकती हो !

Wednesday, February 15, 2012

छूना चाहता हूँ मै

28-05-1997
11:00 PM
छूना चाहता हूँ मै
उन उंचाईयों को
डूबना चाहता हूँ मै
उन गहराईयो में
बदन के हर मोड़
से गुज़रकर
जो पहुंचादे मुझे आत्मा
की धरती पर
उस धरती पर मै एक
फूल उगाना चाहता हूँ
जो बोल सके
हंस सके
खेल सके
अपने मासूम हाथो से
मुझे छू सके
एक विशाल स्तम्भ
बनकर
जो दुनिया से
कह सके
हां ! मै तेरे प्यार की
निशानी हूँ !

Tuesday, February 14, 2012

दिल खोल कर अपना दिखा सकोगे ?

20-08-1994
5:30 PM

दिल खोल कर अपना दिखा सकोगे ?
क्या ग़म-ए-ज़िंदगी का बोझ उठा सकोगे?

तुम्हारे हुस्न की अदाएं मै समझ रहा हूँ
वफा-ए-इश्क की रस्में निभा सकोगे ?

ये वो शय नही कोई उड़ा दे रंग इसका
तस्वीर-ए-मोहब्बत को दिल में बिठा सकोगे ?

सहना मुश्किल है दुश्वारिया ज़माने की
दामन-ए-वफा को रुसवाई से बचा सकोगे ?

सौदे बाज़ी का नही खेल इश्क है ये
अपना सब कुछ क्या इस पे लुटा सकोगे ? 

तेरे मेरे दरमियाँ कुछ हो जाए तो बात बन जाए

26-04-1994
03:45 PM

तेरे मेरे दरमियाँ कुछ हो जाए तो बात बन  जाए
ये ख़्वाब की बात हक़ीकत हो जाए तो बात बन जाए

मैं इशारा करू और तू आ जाए छत पर
तू छत पर आकर मुस्करा जाये तो बात बन जाये

मय छलकती है जो  तुम्हारी आँखों से हरदम
इक पैमाना हमें मिल जाये तो बात बन जाये

सलवटे बेशुमार पड़ी हो पैरहन पे तुम्हारे
 इल्ज़ाम हमारे सर आ जाये तो बात बन जाये

Friday, February 3, 2012

दिल से निकली आवाज़ टूट कर बिखर गयी

03-02-2012
01:10 PM
(अतुल जी आपकी आह ....................)

दिल से निकली आवाज़ टूट कर बिखर गयी
मेरे जज्बातो की लहर न जाने किधर गयी

उन तक पहुंची के नहीं दीवाने की आह
खुशबू सी फ़ैल गयी वो चाह जिधर गयी

मेरे दर्द की दवा तो कोई क्या करता ?
मज़ा लोगो का बन गयी जो उधर गयी

ज़माना समझा न समझा ख्यालात मेरे
रौशनी प्यार की दिल  में घर कर गयी

ज़माना हंस रहा है मै रो भी नहीं सकती

03-02-2012
12:45 PM

(मीना जी आपके शे"र  को ग़ज़ल में कहने की कोशिश , गुस्ताखी हो तो माफ़ कर देना )

ज़माना हंस रहा है मै रो भी नहीं सकती
हालात-ए-मजबूरिया सह भी नहीं सकती

गुजश्ता मोहब्बत आज भी ढूँढता है दिल
बात दिल की किसी से कह भी नहीं सकती

बेशक नफ़रत की आग भी नहीं है दिल में
क्यूं समंदर-ए-इश्क में बह भी  नहीं सकती

ये दर्द-ए-ज़िंदगानी का वो फ़साना है दोस्तों
इस दर्द के बिना अब रह भी नहीं सकती